रविवार, 3 मई 2020

हां मैं गुर्जर हूँ

मैं शिव का चतुर्शूल, देवनारायण का भक्त हूँ 
कारसदेव का प्रिय, मोहनबाबा का स्नेह हूँ 
कुषाण भी मैं हूँ, हूँण भी, प्रतिहार भी हूँ मैं 
पृथ्वी हूँ, जोगराज हूँ, मैं ही पन्नाधाय भी
योद्धा प्रताप मैं ही हूँ,
57 की क्रांति का धनसिंह हूँ, कदम सिंह हूँ 
पथिक भी मै, लोह्पुरुष भी मैं, मैं ही राजेश भी 
71 की लड़ाई का चांदपुरी हूँ मैं 
देशभक्ति में रंगा कश्मीरी औरंगजेब हूँ मैं 
धूप में तपता किसान हूँ, बॉर्डर पर ठिठुरता जवान हूँ 
जो आगे बढ रहा वो विज्ञान हूँ मैं 
मैं हर गुर्जर का सम्मान हूँ, निशान हूँ मैं, पहचान हूँ मैं 
मैं गुर्जर हूँ 
निशान भी, पहचान भी 
मैं ही गुर्जर हूँ

महाज्ञानियों इतिहास को मत मिटाओ!

गुर्जर समाज के इतिहास को लेकर कुछ गिने-चुने लोग कुषाण और हूँण गुर्जरों के विषय में दुष्प्रचार करने की कोशिश कर रहे है | इस दुष्प्रचार के तहत उनकी साज़िश है की कुषाण और हूणों को विदेशी साबित कर दिया जाय| 
और वो चाहते है कि जो इतिहास दबा दिया गया वो दबा ही रहे|
कुषाण गुर्जर हिन्दू-कुश क्षेत्र से भारत में आये थे जोकि अखंडित भारत का क्षेत्र है| 
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यहाँ कुछ प्रश्न उठते है जो कि इनसे पूछे जाने चाहिए | 
1. क्या ये लोग समझते है कि हिन्दू-कुश अखंड भारत का हिस्सा नहीं है?
2. क्या ये बताएँगे कि कौरवों कि माता किस क्षेत्र से थी ? 
3. क्या ये बताएँगे कि किस साज़िश के तहत ये लोग दबा लिए गए गुर्जर इतिहास को सामने नहीं आने देना चाहते ?

क्या है हिंदुकुश पर्वत का सच?

क्या है हिंदूकुश पर्वत का सच ?

हिन्दूकुश उत्तरी पाकिस्तान से मध्य अफगानिस्तान तक विस्तृत एक 800 किमी लंबी वाली पर्वत श्रृंखला है। यह पर्वतमाला हिमालय क्षेत्र के अंतर्गत आती है। हिन्दूकुश पर्वतमाला पामीर पर्वतों से जाकर जुड़ती हैं और हिमालय की एक उपशाखा मानी जाती हैं। पामीर का पठार, तिब्बत का पठार और भारत में मालवा का पठार धरती पर रहने लायक सबसे ऊंचे पठार माने जाते हैं। प्रारंभिक मनुष्य इसी पठार पर रहते थे। हिन्दूकुश पर्वत का पहले नाम पारियात्र पर्वत था। इसी से कालांतर में परिजात नाम पड़ गया । जिस प्रकार हमारे सिर पर केश अर्थात बाल हमारे शरीर का अंतिम सिरा होते हैं , वैसे ही भारतवर्षीय राज्य का अंतिम सिरा होने के कारण कभी इसको हिंदू केश के नाम से भी जाना गया । इसके अतिरिक्त एक मान्यता यह भी है कि यहाँ पर रामचंद्र जी के बेटे कुश ने तपस्या की थी और उनका ही यहाँ के निकटवर्ती क्षेत्रों पर आधिपत्य था , इसलिए इस पर्वतमाला के निकट रहने वाली कई जातियों का नाम कुश के ऊपर ही हो गया। 
सिकंदर ने जब इस क्षेत्र को अपने कब्जे में ले लिया तो इसका नाम यूनानी भाषा में 'कौकासोश इन्दिकौश' यानी 'भारतीय पर्वत' बुलाया जाने लगा। कुछ समय के पश्चात 'कौकासोश' शब्द गौण हो गया और 'इंदिकौश' का 'हिंदूकुश' बन गया । बाद में इनका नाम 'हिन्दूकुश', 'हिन्दू कुह' और 'कुह-ए-हिन्दू' पड़ा। 'कुह' या 'कोह' का मतलब फारसी में 'पहाड़' होता है।
हिन्दुकुश पर्वत एवं 'ऑक्सस' के मध्य में स्थित 'बैक्ट्रिया' अत्यन्त ही उपजाऊ प्रदेश था। इसके उपजाऊपन के कारण ही 'स्ट्रैबो' ने इसे 'अरियाना गौरव' कहा। इस नामकरण से भी स्पष्ट है कि इसे आर्यों का गौरव भी कहा गया । 
सिकन्दर की मृत्यु के पश्चात् बैक्ट्रिया पर सेल्युकस का आधिपत्य रहा। सेल्यूकस वंश के 'आन्तियोकस तृतीय' ने 206 ईपू में भारत के विरूद्ध एक अभियान का नेतृत्व किया। यह अभियान हिन्दुकुश पर्वत को पार कर काबुल घाटी के एक शासक सुभगसेन के विरुद्ध किया गया था। सुभगसेन को पॉलिबियस ने 'भारतीयों का राजा' कहा। 
इसके बाद डेमेट्रियस और मीनेंडर (मिलिंद) नामक यवन शासकों ने इस पर्वत माला से आकर हमले किए। इस के बाद पार्थियन (पहलव), शक (सीथियन), कुषाण और हूण ने अफगानिस्तान (आर्यना) पर हमले किए। फिर अरब और तुर्की के खलिफाओं ने हमले किए। सिकन्दर के बाद डेमेट्रियस ने एक बड़ी सेना के साथ लगभग 183 ई.पू. में हिन्दुकुश पर्वत को पार कर सिंध और पंजाब पर अधिकार कर लिया। तब योग के महान ऋषि पतञ्जलि काबुल क्षेत्र में रहते थे। उन्होंने अपनी पुस्तक  महाभाष्यण 'गार्गी संहिता' एवं मालविकाग्निमित्रम् में इसका उल्लेख किया है।
 यहां से गुजरने वाले लोग इसे हिन्दू क्षेत्र कहते थे इसलिए इस पर्वतमाला का नाम हिन्दू क्षेत्र पड़ गया। काराकोरम और हिन्दूकुश के बीच हिन्दू राज पर्वतमाला है, जहां हिन्दू ऋषियों के आश्रम और राजाओं के सैन्य शिविर थे। यहां गुरु लोग बाहर से आने वाले लोगों को ज्ञान देते थे।
बहुत से तुर्की, चीनी और अरब के लोग जो यहां आते-जाते थे वे क्षेत्र शब्द नहीं बोल पाते थे। क्षेत्र को छेत्र कहते थे। क+श+त्र उक्त तीन शब्द से मिलकर बना क्षे‍त्र इसलिए कुछ लोग हिन्दू कशेत्र भी कहते थे। इस तरह यह क्षे‍त्र शब्द बोलने वाले लोगों के कारण बिगड़ता गया। क्ष और त्र बोलना आम लोगों के लिए थोड़ा कठिन था इसलिए इसमें से त्र भी हटा दिया गया और रह गया हिन्दू केश।
सन् 1333 ईस्वीं में इब्नबतूता के अनुसार हिन्दुकुश का मतलब 'मारने वाला' था। इसका अर्थ था कि यहाँ से गुजरने वाले लोगों में से अधिकतर ठंड और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण मर जाते थे। एक मान्यता यह भी है कि उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप पर अरबों-तुर्कों के कब्जे के बाद हिन्दुओं को गुलाम बनाकर इन पर्वतों से ले जाया जाता था और उनमें से बहुत से हिन्दू यहां बर्फ में मर जाया करते थे। इस तरह की बातें करने वालों ने खुदकुशी से इस शब्द का अर्थ लिया। यहां हिन्दू खुदकुशी कर लेते थे इसलिए पहले हिन्दूकुशी और फिर हिन्दूकुश हो गया।
भारत पर अरबों-तुर्कों के कब्जे के लिए हिन्दूकुश का रास्ता अहम था। मुगलों ने अफगानिस्तान को हिन्दूविहीन बनाने के लिए यहाँ कत्लेआम किया। हिन्दूकुश पर आक्रांताओं ने लाखों हिन्दुओं को गुलाम बनाकर मरने के लिए भेजा।
अरब, बगदाद, समरकंद जैसे इलाकों में हिन्दुओं को बेचने के लिए मंडियां लगाईं। आक्रांताओं की यातनाओं से वही हिन्दु बचे जिन्होंने इस्लाम धर्म अपनाया था। तैमूर लंग ने 1 लाख गुलामों को हिन्दूकुश की बर्फीली चोटियों पर छोड़ दिया था।
हिन्दूकुश पर्वत श्रंखला बेहद हिन्दुओं की पहचान से जुड़ी रही है। इसके सहारे ही तमाम आक्रांताओं ने हिन्दुओं के नाश की साजिश रची। यानी हिन्दुओं के इतिहास के बारे में अगर गहराई से देखें तो आक्रांताओं के पहले जो परंपराएं हिन्दुकुश के इस पार थीं वो हिन्दू थीं और आक्रांताओं ने यहां पर हिन्दू को खत्म करने के लिए काम किया।
इन सबसे अलग एक मान्यता राहुल सांकृत्यायन जी के ' मध्य एशिया का इतिहास' खंड - 1 , पृष्ठ 175 के आधार पर डॉ पी.डी. गुर्जर 'गुर्जर वंश का इतिहास नामक' अपनी पुस्तक में प्रतिपादित करते हैं । जिसमें वह लिखते हैं कि बाइबल के अनुसार ईरान से जुड़ा हुआ पूर्वी भाग 'कुश' है । यह सिद्ध करता है कि आधुनिक अफगानिस्तान बाईबिल में 'कुश' के नाम से जाना गया है । बाद में सिन्ध की पूरी घाटी को पार्शियन्स ने 'हिंदू' कहा है । पर्शियन भाषा प्राकृत है जो संस्कृत की उपशाखा है । पर्शियन भाषा में 'स' का :ह' हो जाता है जैसे 'सप्त' का 'हप्त' , 'सिन्ध' का 'हिंद' , 'सप्ताह' का 'हफ्ता' , 'सहस्र' का 'हजार' हो गया है । 
सिंधु घाटी का पूरा पूर्वी हिस्सा 'हिंद' के नाम से जाना गया है । अरबी लोगों ने इस क्षेत्र को 'अल - उल -हिंद' कहा है । किंतु पार्शियन्स ने विशेष रूप से मध्य एशिया के लोगों ने इस क्षेत्र के मूल निवासियों को 'हिंदू' कहा है । इसलिए उसको 'हिंदूकुश' कहा है। जिसे आज भी इसी नाम से हम जानते हैं ।
कुशान ( कुषाण ) हिंदू थे , जो अपने नेता कनिष्क के नेतृत्व में पाटलिपुत्र पहुंचे । इतिहास में यह विचित्रता है कि जब पेशावर का हिंदू जो आर्यावर्त में ही है पटना को जीतता है तो विदेशी कहलाता है , लेकिन जब पटना का एक हिंदू चंद्रगुप्त द्वितीय पेशावर को जीतता है तो वह विदेशी नहीं कहलाता। इसलिए ध्यान में रखना चाहिए कि पश्चिम में पेशावर और पूर्व में पटना आर्यावर्त के ही क्षेत्र थे ।
कनिष्क एक हिंदू नाम है । अब यदि कनिष्क भारी कपड़े व जूते पहने हुए हैं तो समझना चाहिए कि 'हिंदू कुश' और कैलाश की बर्फीली घाटी में पटना वाली धोती नहीं पहन सकते हैं । संक्षेप में यह है कि कुषाण ( कसाना ) गुर्जरों का गोत्र उपजाति है । जिनका मातृ परिवार पेशावर में था , उनका परिवार देवपुत्र आर्य कहलाता था । (जर्नल ऑफ रॉयल एशियाटिक सोसायटी , पृष्ठ 402 403)
डॉक्टर पी.डी.गुर्जर के इस संकेत को भी समझने की आवश्यकता है। हमारा विचार है कि राहुल सांकृत्यायन जी जिस बात की ओर संकेत कर रहे हैं वह कहीं अधिक प्राचीन और तर्कसंगत है। बाकी सारे नाम देश , काल ,परिस्थिति के अनुसार जुड़ते रहे। यद्यपि मुगलों और तुर्कों के अत्याचारों के ऐतिहासिक सच को भी उपेक्षित नहीं कह सकता।पर उन्होंने तो ऐसे अत्याचार भारतवर्ष के अन्य हिस्सों में भी तो किए थे , उनको कभी हिंदू कुश नहीं कहा गया । स्पष्ट है कि हिंदू कुश नाम तो पहले से ही था । हिन्दू नरसंहार और हिंदूकुश समानार्थक से दिखने के कारण उनके नरसंहारों के साथ भी इसे जोड़कर देखा जाने लगा।
चित्र में हिंदू कुश पर्वत ऐसा ही लग रहा है जैसे किसी महिला के केश बिखरे हुए हैं।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
अखिल भारत हिन्दू महासभा

गुर्जर वंश का गौरवशाली इतिहास लिख रहे डॉ राकेश कुमार आर्य

गुर्जर वंश का गौरवशाली इतिहास लिख रहे 50 पुस्तकों के लेखक इतिहासकार डॉ राकेश कुमार आर्य का संक्षिप्त परिचय

चार दर्जन पुस्तकों के लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य का जन्म 17 जुलाई 1967 को ग्राम महावड़ जनपद गौतमबुद्ध नगर उत्तर प्रदेश में एक आर्य समाजी गुर्जर परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम श्री राजेंद्रसिंह आर्य और माता का नाम श्रीमती सत्यवती आर्या है । विधि व्यवसायी होने के साथ-साथ श्री आर्य एक प्रखर वक्ता भी हैं । डॉक्टर आर्य के ज्येष्ठ भ्राताश्री प्रोफेसर विजेंद्र सिंह आर्य एक अच्छे वक्ता और लेखक हैं , जबकि उनके दूसरे ज्येष्ठ भ्राताश्री मेजर वीर सिंह आर्य सेना में रहकर देश की उत्कृष्ट सेवाएं कर इस समय सेवानिवृत्त हो चुके हैं । जबकि तीसरे ज्येष्ठ भ्राता श्री देवेंद्र सिंह आर्य वरिष्ठ अधिवक्ता हैं । जो कि बार काउंसिल उत्तर प्रदेश के अनुशासन समिति के सदस्य भी रह चुके हैं , साथ में ही पश्चिम उत्तर प्रदेश विकास पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और 'उगता भारत' समाचार पत्र के चेयरमैन भी हैं ।
डॉ आर्य की एक बहिन हैं । जिनका नाम श्रीमती सुमन आर्य बंसल हैं और एक अच्छी समाज सेविका हैं ।
डॉ आर्य ने बी ए , एलएलबी तक की शिक्षा प्राप्त की है । डॉ आर्य का विवाह 17 जून 1991 को श्रीमती ऋचा आर्या के साथ हुआ । उनकी तीन बेटियां श्रुति श्वेता , श्रेया और एक बेटा अमन आर्य है।
डॉ आर्य की पहली पुस्तक " भारतीय छात्र धर्म और अहिंसा" व " भारतीय संस्कृति में साम्यवाद के मूल तत्व " 1999 में प्रकाशित हुई ,थीं । तब से उन्होंने भारतीय धर्म संस्कृति और इतिहास के क्षेत्र में एक से बढ़कर एक शोध ग्रंथ देकर राष्ट्र की अमूल्य सेवा की है । अभी तक उनकी 50 पुस्तकें छप चुकी हैं ।
डॉ आर्य विधि व्यवसायी हैं और 17 जुलाई 2010 से राष्ट्रवादी समाचार पत्र " उगता भारत " का सफल संपादन कर रहे हैं । यह पत्र देश के विभिन्न राज्यों में पहुंचता है और देश की युवा पीढ़ी का होश मार्गदर्शन करता है ।
डॉक्टर आर्य की प्रतिभा को देखते हुए ही उन्हें अखिल भारत हिंदू महासभा का वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राष्ट्रीय प्रेस महासंघ का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया । इसके साथ-साथ श्री आर्य राष्ट्रवादी संगठनों और लोगों की ओर से तैयार किए गए " राष्ट्रीय इतिहास पुनर्लेखन समिति " के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं ।
श्री आर्य को उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह द्वारा विशेष रूप से 22 जुलाई 2015 को राजभवन राजस्थान में सम्मानित किया गया । इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से 12 मार्च 2019 को केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा उनकी शोध कृति " भारत के 1235 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास " को वर्ष 2017 के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है । इसके अतिरिक्त अन्य अनेकों सामाजिक संगठनों के द्वारा भी श्री आर्य को विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है ।
इतिहास संबंधी शोधपूर्ण कार्य पर उन्हें अंतर्राष्ट्रीय आर्य विद्यापीठ के अध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ ) श्यामसिंह शशि और संस्कृत में प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता प्रोफेसर डॉक्टर सत्यव्रत शास्त्री , प्रभृति प्रख्यात विद्वानों के द्वारा डॉक्ट्रेट की मानद उपाधि विगत 17 जुलाई 2019 को उनके 53 वें जन्म दिवस के अवसर पर दिल्ली में होटल अमलतास इंटरनेशनल में प्रदान की गई।
अभी तक लगभग चार दर्जन से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके डॉ आर्य को शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार की ओर से इतिहास के क्षेत्र में किए गए उत्कृष्ट लेखन के लिए भी भारत के शिक्षा मंत्री श्री रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया जा रहा है ।
श्री आर्य को उनके उत्कृष्ट लेखन कार्य के लिए विभिन्न विश्वविद्यालयों व सामाजिक संस्थाओं से भी सम्मानित किया गया है । मेरठ के चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय सहित कई विश्वविद्यालयों में उनके लेक्चर विजिटर प्रोफेसर के रूप में आयोजित किए गए हैं ।
वर्तमान में डॉ आर्य 'गुर्जर वंश का गौरवशाली इतिहास' लिख रहे हैं । जिसमें वह इतिहास के अनछुए पहलुओं और तथ्यों को प्रकट करने का सराहनीय कार्य कर रहे हैं। डॉक्टर आर्य का कहना है कि उन्हें इतिहास संबंधी प्रतिभा अपने पिताश्री महाशय राजेंद्र सिंह आर्य जी से विरासत में मिली जो स्वयं इतिहास के मर्मज्ञ विद्वान थे । जबकि माताश्री श्रीमती सत्यवती आर्या आर्य समाज की विचारधारा से प्रेरित धर्मशील महिला थीं । जिन्होंने सदा उन्हें पिता के दिये विचारों को आगे बढ़ाने की प्रेरणा दी।

निवास : सी ई 121 , अंसल गोल्फ लिंक , तिलपता चौक , ग्रेटर नोएडा, जनपद गौतमबुध नगर , उत्तर प्रदेश ।
चलभाष 9911169917

शनिवार, 15 दिसंबर 2018

देश के किसान नेताओं का राजनैतिक एनकाउंटर

देश के किसान नेताओं का राजनीतिक एनकाउंटर

1. सरदार वल्लभ भाई पटेल - देश के प्रथम प्रधानमंत्री बनने वाले थे परन्तु राहुल गांधी के दादा पंडित जवाहर लाल नेहरू की कुटिल चाल से प्रधानमंत्री पद से वंचित होना पड़ा, आखिर सरदार पटेल जी को उप प्रधानमंत्री एवं केंद्रीय गृह मंत्री के पद तक ही रहे।

2. विजय सिंह पथिक - तत्कालीन राजस्थान सहित मध्यभारत कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय सिंह पथिक जी राजस्थान के प्रथम मुख्यमंत्री बनाए जाने वाले थे, विजय सिंह पथिक जी के नाम पर तत्कालीन सभी क्रांतिकारी नेता एकजुट थे, परन्तु राहुल गांधी के दादा पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने राजस्थान का प्रथम मुख्यमंत्री क्रांतिकारी विजय सिंह पथिक जी को नहीं बनने दिया।

3. चौधरी नारायण सिंह चौहान - उत्तरप्रदेश में कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे चौधरी नारायण सिंह जी चौहान को गांधी परिवार ने कभी आगे नहीं बढ़ने दिया। इन्हें भी उत्तरप्रदेश में उप मुख्यमंत्री के पद से ही संतोष करना पड़ा।

4. रामचंद्र विकल - उत्तरप्रदेश के प्रमुख कांग्रेस नेता रामचंद्र विकल को 1967 में उत्तरप्रदेश के विधायक दल की बैठक में नेता (मुख्यमंत्री) चुन लेने के बाद भी मुख्यमंत्री पद से वंचित रखा गया। रामचंद्र विकल जी को भी आखिर उत्तरप्रदेश में उप मुख्यमंत्री के पद से ही संतोष करना पड़ा।

5. चौधरी यशपाल सिंह - पश्चिमी उत्तरप्रदेश की राजनीति के प्रमुख क्षत्रप के रूप में पहचान रखने वाले चौधरी यशपाल सिंह जी ताउम्र कांग्रेस को मजबूत किया, अंतिम दिनों में भाजपा से लोकसभा चुनाव लड़ा और लास्ट समय मे समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए गए। परन्तु इसी गांधी परिवार ने इनको आगे नहीं बढ़ने दिया, चौधरी साहब विधायक, सांसद, मंत्री अपने दम पर बनते रहे। इमरजेंसी के समय पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सीट जीत कर इन्होंने लाज बचाई थी, और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी खुद इनको बधाई देने सहारनपुर आई थी, परन्तु इसी गांधी परिवार ने इनको राजनीति में आगे नहीं बढ़ने दिया।

6. राजेश पायलट - दौसा के पूर्व सांसद राजेश पायलट जी राजस्थान में किसानों के लोकप्रिय जननेता थे। पायलट जी केंद्रीय राज्य मंत्री भी बने। कांग्रेस के मजबूत नेता थे पायलट जी। कांग्रेस में अध्यक्ष अधिकांश गांधी परिवार से ही बनते आए हैं। कांग्रेस की तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी जी के सामने राजेश पायलट जी कांग्रेस अध्यक्ष हेतु नामांकन किया चुनाव लड़ा, और कुछ ही दिनों में समाचार आते है कि हवाईजहाज उड़ाने वाला पायलट सड़क दुर्घटना में मारा गया जो जांच का विषय है।

7. रामशरण दास - उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी के संस्थापक रहे समाजवादी नेता रामशरण दास विधायक एवं मंत्री बने। आजीवन रामशरण दास जी समाजवादी पार्टी के उत्तरप्रदेश के प्रदेशाध्यक्ष रहे सपा की यूपी में सत्ता भी आती रही और जाती रही, पर मुख्यमंत्री तो मुलायम सिंह यादव स्वंय और परिवार बनता रहा, रामशरण दास जी ताउम्र सपा की सेवा करते रहे।

8. कृष्णपाल गुर्जर - हरियाणा में मुख्यमंत्री का चेहरा बनकर रह गए। कृष्णपाल गुर्जर जी भारतीय जनता पार्टी के हरियाणा प्रदेशाध्यक्ष थे तब। वर्तमान में मोदी सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री है।

9. रामवीर सिंह बिधूड़ी - ऐसी ही कहानी वर्ष 2014 में दिल्ली में दोहराई गई। दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल के इस्तीफा देने के बाद दिल्ली में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार बनाने की कवायद शुरू हुई। भाजपा के 29 विधायक थे और उसे सरकार बनाने के लिए 67 सदस्यीय विधानसभा में पांच और विधायकों की जरूरत थी। श्री रामवीर सिंह बिधूड़ी जी को मुख्यमंत्री बनाने की शर्त पर नौ गैर भाजपाई विधायक सरकार बनाने के लिए भाजपा को समर्थन देने को तैयार भी  थे। उन्होंने तीन महीने तक इन्तजार भी किया। भाजपा नेतृत्व ने बिधूड़ी जी को मुख्यमंत्री बनाने का आश्वासन दिया भी था लेकिन बाद में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व किसी अन्य नेता को मुख्यमंत्री और बिधूड़ी जी को उपमुख्यमंत्री बनाने के विकल्प पर विचार करने लगा, लेकिन भाजपा को सरकार बनाने के लिए समर्थन देने को तैयार नौ के नौ विधायक रामवीर सिंह बिधूड़ी जी के अलावा किसी और को मुख्यमंत्री बनाये जाने के लिए तैयार नहीं हुए। आखिर में पार्टी ने चुनाव में जाने का फैसला किया।

10. लेफ्टिनेंट कर्नल सचिन पायलट - सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल सचिन पायलट दौसा और अजमेर से सांसद रह चुके है और डॉ मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री भी रह चुके हैं। राजस्थान में साल 2013 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की बुरी तरह हार हुई, पूरे राजस्थान में मात्र 21 सीटे जीती। कांग्रेस आलाकमान ने किसान नेता सचिन पायलट को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी का प्रदेशाध्यक्ष बनाकर राजस्थान के किसानों एवं युवाओं में नई जान फूंकी। सचिन पायलट जी ने पूरे 5 साल राजस्थान के गांव गांव ढाणी ढाणी जाकर कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने का कार्य किया। कांग्रेस आलाकमान हमेशा कहते रहे कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनने पर सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। इस दौरान राजस्थान में हुए सभी उप चुनावों में कांग्रेस ने सचिन पायलट के नेतृत्व में जीत हांसिल की। 2018 के विधानसभा के आम चुनाव कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट जी के नेतृत्व में लड़ा गया और कांग्रेस आलाकमान कहता रहा कि मुख्यमंत्री पायलट को ही बनाएंगे, आखिर राजस्थान में विधानसभा के चुनाव सम्पन्न हुए और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट जी के नेतृत्व में कांग्रेस चुनाव जीत गई। अब वही पण्डित जवाहर लाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी जी का पोता कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष पण्डित राहुल गांधी जी, पोती प्रियंका वाड्रा गांधी, पण्डित जवाहरलाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी जी की पुत्रवधू सोनिया गांधी जी यानी कांग्रेस परिवार अर्थात कांग्रेस आलाकमान यानी कि तीन सदस्यीय परिवार राजस्थान में किसानों के नेता सचिन जी पायलट को मुख्यमंत्री बनाने से रोकने में लग गए। आखिर किसान नेता सचिन पायलट जी को भी राजस्थान में उप मुख्यमंत्री के पद से ही संतोष करना पड़ा।

नन्दलाल गुर्जर

भीलवाड़ा

सम्पर्क सूत्र 9166904121

शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

सरदार पटेल मूलतः गुर्जर थे

सरदार पटेल मूलत: ''गुर्जर'' थे :  अनूप पटेल ( जे .एन. यू. - शोधार्थी )

Sardar Patel Hailed from Gurjar Family (Anoop Patel :A research Scholar in JNU)

सर्वाधिक प्रमाणिक जेनेटिक शोध साबित करते है कि पटेल / पाटीदारो के पूर्वज गुर्जर है

सर्वाधिक प्रमाणिक जेनेटिक शोध साबित करते है कि पटेल / पाटीदारो के पूर्वज गुर्जर है :-

Patel :-

(Gujarati: paṭel, pronounced [pə ʈ el]) is an Indian surname used by some of the agrarian castes predominant in the
Western Indian state of Gujarat.

The surname is the second most common in India, following Singh.

The Patel surname is found
primarily in the Indian states of Gujarat, Rajasthan, Madhya Pradesh

Uttar Pradesh, and Orissa. The BBC Radio 4
programme "Meet the Patels" (June 2009) asserted that there are around 410,000 to 670,000 Patels in the UK, where it is now the
24th most common surname

Patil is the Marathi version of this same name.

Ethnicity::

The surname is popular and denotes a particular landowning status. People of different religions and castes share the surname. The
Patels historically belonged to various Patidar sub-castes. Two main groups of Patels in Gujarat make up the Patidar community
including: 1. Leva Patel/Patidar [Charotar Leuva patels are the richest peoples from the beginning in gujarat] 2. Kadava Patel/Patidar.
The Kadava Patidar sub-caste is found mostly in districts of the Saurashtra region like Rajkot, Junagadh, Jamnagar and Bhavnagar
and also Mahesana. the Leuva Patidar sub-caste are mainly found in the Charotar Region (which are also known as Charotar Leuva
Patidars) (Kheda, Anand), Kanam (Vadodara, Bharuch, Panchmahal), South Gujarat and Saurashtra region. The book titled "Patel a
Life" by Rajmohan Gandhi throws some light on the ancestors of Sardar Patel: "His mother Labda gave him birth in the house of her
brother Doongerbhai Desai.. Labda's husband Jhaverbhai belonged not to Nadiad but to a village called Karamsad(twelve miles south
of Nadiad and three miles west of the town of Anand), where he tilled a ten acre plot and owned a small house. He and Labda and all
their relatives were Patidars. Centuries earlier their ancestors had migrated from the far north and taken possession of a sandy yet
rich stretch of soil called the charotar... the Patidar ancestors - possibly linked to the formidable Huns who swept down into India from
the northwest in the sixth century or to the Gujars of Punjab or to both-cleared the Charotar woods, improved the sandy ground with
dung manure and cart loads of black soil... they also soldiered for nearby chieftains... more tangibly, they obtained a clear title of the
lands they had occupied, and were therefore called Patidars-holders of a land title - or Patels. The Patidars have alternated, in their
customs, between eating meat and abstaining from it, between paying bride-price and demanding dowry from a bride's parents,
between permitting widow-remarriage and banning it... while changing their customs, the Patidars retained their Hindu religion, ralling together against outsiders, male supremacy, silence before elders and an individual's subservience to the (extended) family but
independence before the world. Bluntness in speech, an unconcern about dress and appearance, a sense of equality within the fold
that turned the village into " a collectivity of Patidar brothers" and a sense of superiority towards non-Patidars, a self-image of tough
independent men... naturally given to ruling over others" marked the Patidar character.
The Gujars who migrated from North India to Gujrat started calling themselves as Patidar or Patel. In Rajasthan, Patel is a very
common word used by Gujars... in every village there is a title (Patel) given to some dominant family and this title of 'Patel" runs in the
family and is transferred to the eldest son of the family. In areas around Bharatpur, Gujars are popularly called as "Patel" by other
communities. It is similar to "Chaudhary" which was used to be in the NCR and Western Uttar-Pradesh as a title both by Gujars and
Jats but now a days in the entire Northern India "Chaudhary" is being used as surname by Jats.The Gujars of North India also have
two main devisions- (i) Laur Gujar and (ii) Khari Gujar that is very similar to 1. Leuva Patidar and 2. Kadava Patidar of Gujrat. During
the Moghul era Patels were trusted heads of the villages. The British also relied on Patels to carry out administration in any particular
village. Pate is derived from the word "Pattalikh" meaning certain portion of land "patta" (A unit of Land) and named after the head of
the village "likh" meaning "named". Amin surname bearers are also known as Patels. Saurashtra kadva patel have specific surname
like Sapovadia, Jasani, Bhut, Viroja, Garala, Savsani, Marvaniya etc. These are drawn on the basis of their migration from a village,
e.g. Sapovadia brought from Sapovada village. Saurastra Leuva Patels in the Saurastra region district have specific surnames:
Abhangi, Babaria, Busa, Khoyani, Pambhar, Limbasiya, Kanani, Kunjadiya, Dobaria, Keraliya, Radadia, Gajera, Sutaria, Sojitra and
so on from their original village names (from the Kheda, Vadodara, Ahmedabad, and Saurastra regions). In South Gujarat, nearly 90%
of the members of the Koli and Kanbi Patidar sub-castes bear 'Patel' as their last name. The Patels outnumber all other Gujaratis in
the United States, United Kingdom, and New Zealand. The surname 'Patel' is also used by Kolis in other regions of Gujarat. Besides
Kolis and Kanbis, Dhodia Patidars of South Gujarat also use Patel as their last name. The surname can also be found amongst
Muslims, and Parsis. Patidars of Rajasthan (south and south-east rajasthan) and Madhya-Pradesh mainly use 'Patidar' itself as
surname. The Patidars of these two states are also divided into two groups, Leuva and Kadava. It is also the surname of many of the
Gujarati Muslim Vora Patel communities.
It should be noted that other Gujaratis who migrated out of what is now the state of Gujarat during the British Raj to British East Africa
(Kenya and Uganda) would sometimes adopt the surname 'Patel' and this surname was then subsequently passed onto their
descendants (who now mainly reside outside Kenya and Uganda). Also, during the British Raj, some 'Patels' who migrated to British
East Africa and the Union of South Africa (South Africa) adopted different surnames, usually the name of their village (e.g. 'Dandikar'),
their trade (e.g. 'Contractor'), or even their grandfather's name and subsequently these surnames have been passed down to their
descendants.
Origins
Patels do not belong to any particular religion or caste; rather the name merely indicates that the bearer came from a particular region,
historically. Some Patels follow Islam, Zoroastrianism or Christianity, but they are predominantly followers of Hinduism.
Gujaratis bearing the last name Patel were from the Punjab region and are Suryavanshi branch Kshatriyas Patels are a sub-group of
the Gurjar clan who are dispersed all over the Indian sub-continent. These refugees were accepted in present day Gujarat by the
Solanki kings.
The Solanki king gave uncultivated land in the Petlad Taluka. This land was divided into villages and for each village a head was
appointed. His job was to keep all records. Each village gave a portion of the crop to the king, as a form of tax. The book in which this
tax was recorded was called the pat, and the act of writing it down was known as likh; hence the head of the village was addressed as
Pat-Likh and the people of the villages became known as Patlikhs. Over time, changes in the vernacular produced modern variations
such as Patel, Patidar and Patil.
The Patels were further distinguished by the village they belonged to. Examples of this are the Leava Patels who originated from the
village of Leava.

http://documents.mx/documents/r2-in-india-frequency-within-communities.html