मंगलवार, 5 जुलाई 2016

शिव भक्त सम्राट मिहिरकुल हूण ( Emperor Mihirkula Huna )- डा. सुशील भाटी

शिव भक्त सम्राट मिहिरकुल हूण ( Emperor Mihirkula Huna )

डा. सुशील भाटी 

पांचवी शताब्दी के मध्य में४५० इसवी के लगभगहूण गांधार इलाके  के शासक  थेजब उन्होंने वहा से सारे सिन्धु घाटी प्रदेश को जीत लियाकुछ समय बाद ही उन्होंने मारवाड और पश्चिमी राजस्थान के इलाके भी जीत लिए४९५ इसवी के लगभग हूणों ने तोरमाण के नेतृत्व में गुप्तो से पूर्वी मालवा छीन लियाएरणसागर जिले में वराह मूर्ति पर मिले तोरमाण के अभिलेख से इस बात की पुष्टि होती हैंजैन ग्रन्थ कुवयमाल के अनुसार तोरमाण चंद्रभागा नदी के किनारे स्थित पवैय्या  नगरी से भारत पर शासन करता थायह पवैय्या नगरी ग्वालियर के पास स्थित थी

तोरमाण के बाद उसका पुत्र मिहिरकुल हूणों का राजा बनामिहिरकुल तोरमाण के सभी विजय अभियानों हमेशा उसके साथ रहता था|  उसके शासन काल के पंद्रहवे वर्ष का एक अभिलेख ग्वालियर एक सूर्य मंदिर से प्राप्त हुआ हैंइस प्रकार हूणों ने मालवा इलाके  में अपनी स्थति मज़बूत कर ली थीउसने उत्तर भारत की विजय को पूर्ण किया और गुप्तो सी भी नजराना वसूल कियामिहिरकुल ने पंजाब स्थित स्यालकोट को अपनी राजधानी बनाया|मिहिकुल हूण एक कट्टर शैव था|  उसने अपने शासन काल में हजारों शिव मंदिर बनवायेमंदसोर अभिलेख के अनुसार यशोधर्मन से युद्ध होने से पूर्व उसने भगवान स्थाणु (शिव) के अलावा किसी अन्य के सामने अपना सर नहीं झुकाया थामिहिरकुल ने ग्वालियर अभिलेख में भी अपने को शिव भक्त कहा हैंमिहिरकुल के सिक्कों पर जयतु वृष लिखा हैं जिसका अर्थ हैं- जय नंदीवृष शिव कि सवारी हैं जिसका मिथकीय नाम नंदी हैं|

कास्मोस इन्दिकप्लेस्तेस नामक एक यूनानी ने मिहिरकुल के समय भारत की यात्रा की थीउसने क्रिस्टचिँन टोपोग्राफी” नामक अपने ग्रन्थ में लिखा हैं की हूण भारत के उत्तरी पहाड़ी इलाको में रहते हैंउनका राजा मिहिरकुल एक विशाल घुड़सवार सेना और कम से कम दो हज़ार हाथियों के साथ चलता हैंवह भारत का स्वामी हैं|मिहिरकुल के लगभग सौ वर्ष बाद चीनी बौद्ध तीर्थ यात्री हेन् सांग ६२९ इसवी में भारत आया वह अपने ग्रन्थ सी-यू-की” में लिखता हैं की सैंकडो वर्ष पहले  मिहिरकुल नाम का राजा हुआ करता था जो स्यालकोट से भारत पर  राज  करता था वह  कहता हैं कि मिहिरकुल नैसर्गिक रूप से प्रतिभाशाली और बहादुर था|

हेन् सांग बताता हैं कि मिहिरकुल ने भारत में बौद्ध धर्म को बहुत भारी नुकसान पहुँचायावह कहता हैं कि एक बार मिहिरकुल ने बौद्ध भिक्षुओं से बौद्ध धर्म के बारे में जानने कि इच्छा व्यक्त कीपरन्तु बौद्ध भिक्षुओं ने उसका अपमान कियाउन्होंने उसके पासकिसी वरिष्ठ बौद्ध भिक्षु को भेजने की जगह एक सेवक को बौद्ध गुरु के रूप में  भेज दियामिहिरकुल को जब इस बात का पता चला तो वह गुस्से में आग-बबूला हो गया और उसने बौद्ध धर्म के विनाश कि राजाज्ञा जारी कर दीउसने उत्तर भारत के  सभी बौद्ध बौद्ध मठो को तुडवा दिया और भिक्षुओं का कत्ले-आम करा दियाहेन् सांग कि अनुसार मिहिरकुल ने उत्तर भारत से बौधों का नामो-निशान मिटा दिया|

गांधार क्षेत्र में मिहिरकुल के भाई के विद्रोह के कारणउत्तर भारत का साम्राज्य उसके हाथ से निकल करउसके विद्रोही भाई के हाथ में चला गया|किन्तु वह शीघ्र ही कश्मीर का राजा बन बैठाकल्हण ने बारहवी शताब्दी मेंराजतरंगिणी” नामक ग्रन्थ में कश्मीर का इतिहास लिखा हैंउसने मिहिरकुल काएक शक्तिशाली विजेता के रूप में ,चित्रण किया हैंवह कहता हैं कि मिहिरकुल काल का दूसरा नाम थावह पहाड से गिरते है हुए हाथी कि चिंघाड से आनंदित होता थाउसके अनुसार मिहिरकुल ने हिमालय से लेकर लंका तक के इलाके जीत लिए थेउसने कश्मीर में मिहिरपुर नामक  नगर बसायाकल्हण के अनुसार मिहिरकुल ने कश्मीर में श्रीनगर के पास मिहिरेशवर नामक भव्य शिव मंदिर बनवाया थाउसने गांधार इलाके में ७०० ब्राह्मणों को अग्रहार (ग्राम) दान में दिए थेकल्हण मिहिरकुल हूण को ब्राह्मणों के समर्थक शिव भक्त के रूप में प्रस्तुत करता हैं|

मिहिरकुल ही नहीं वरन सभी हूण शिव भक्त थेहनोल ,जौनसार बावर,उत्तराखंड में स्थित महासु देवता (महादेव) का मंदिर हूण स्थापत्य शैली का शानदार नमूना हैंकहा जाता हैं कि इसे हूण भट ने बनवाया थायहाँ यह उल्लेखनीय हैं कि भट का अर्थ योद्धा होता हैं |

हाडा लोगों के आधिपत्य के कारण ही कोटा-बूंदी इलाका हाडौती कहलाता हैं राजस्थान का यह हाडौती सम्भाग कभी हूण प्रदेश कहलाता थाआज भी इस इलाके में हूणों गोत्र के गुर्जरों  के अनेक गांव हैंयहाँ यह उल्लेखनीय है कि प्रसिद्ध इतिहासकार वी. ए. स्मिथविलियम क्रुक आदि ने गुर्जरों को श्वेत हूणों से सम्बंधित माना हैंइतिहासकार कैम्पबेल और डी. आर. भंडारकर गुर्जरों की उत्त्पत्ति श्वेत हूणों की खज़र शाखा से मानते हैं बूंदी इलाके  में रामेश्वर महादेवभीमलत और झर महादेव हूणों के बनवाये प्रसिद्ध शिव मंदिर हैंबिजोलियाचित्तोरगढ़ के समीप स्थित मैनाल कभी हूण राजा अन्गत्सी की राजधानी थीजहा हूणों ने तिलस्वा महादेव का मंदिर बनवाया थायह मंदिर आज भी पर्यटकों और श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता हैंकर्नल टाड़ के अनुसार बडोलीकोटा में स्थित सुप्रसिद्ध शिव मंदिर पंवार/परमार वंश के हूणराज ने बनवाया था|

इस प्रकार हम देखते हैं की हूण और उनका नेता मिहिरकुल भारत में बौद्ध धर्म के अवसान और शैव धर्म के विकास से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं|

  सन्दर्भ ग्रन्थ

1.  K C Ojha, History of foreign rule in Ancient India,  Allahbad, 1968.
2. Prameswarilal Gupta, Coins, New Delhi, 1969.
3. R C Majumdar, Ancient Iindia.
4. Rama Shankar Tripathi, History of Ancient IndiaDelhi, 1987.
5. Atreyi Biswas, The Political History of Hunas in India, Munshiram Manoharlal Publishers, 1973.
6. Upendera Thakur, The Hunas in India.
7. Tod, Annals and Antiquities of Rajasthan, vol.2
8. J M Campbell, The Gujar, Gazeteer of Bombay Presidency, vol.9, part.2, 1896
9. D R Bhandarkarkar Gurjaras, J B B R A S, Vol.21, 1903
10. Tod, Annals and Antiquities of Rajasthan, edit. William Crooke, Vol.1, Introduction
11. P C BagchiIndia and Central Asia, Calcutta, 1965
12. V A Smith, Earley History of India
                                                                                                      (Dr. Sushil Bhati)

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