मंगलवार, 5 जुलाई 2016

भारतीय राष्ट्रीय संवत - शक संवत ( Saka Era ) - डा. सुशील भाटी

भारतीय राष्ट्रीय संवत - शक संवत ( Saka Era )

 डा. सुशील भाटी                                          
Kanishka's Emblem

शक संवत भारत का राष्ट्रीय संवत हैंइस संवत को कुषाण/कसाना सम्राट कनिष्क महान ने अपने राज्य रोहण के उपलक्ष्य में 78 इस्वी में चलाया थाइस संवत कि पहली तिथि चैत्र के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा होती हैं जोकि भारत के विश्व विख्यात सम्राट कनिष्क महान के राज्य रोहण की वर्ष गाठ हैंशक संवत में कुछ ऐसी विशेषताए हैं जो भारत में प्रचलित किसी भी अन्य संवत में नहीं हैं जिनके कारण भारत सरकार ने इसे भारतीय राष्ट्रीय संवत” का दर्ज़ा प्रदान किया हैं|

भारत भाषाई और सांस्कृतिक बहुलता वाला विशाल देश हैं,जिस कारण आज़ादी के समय यहाँ अलग-अलग प्रान्तों में विभिन्न  संवत चल रहे थेभारत सरकार के सामने यह समस्या थी कि किस संवत को  भारत का अधिकारिक संवत का दर्जा दिया जाएवस्तुत भारत सरकार ने सन 1954 में संवत सुधार समिति(Calendar Reform Committee) का गठन किया जिसने देश प्रचलित 55 संवतो की पहचान कीकई बैठकों में हुई बहुत विस्तृत चर्चा के बाद संवत सुधार समिति ने स्वदेशी संवतो में से शक संवत को अधिकारिक राष्ट्रीय संवत का दर्जा प्रदान करने कि अनुशंषा कीक्योकि  प्राचीन काल में यह संवत भारत में सबसे अधिक प्रयोग किया जाता थाशक संवत भारतीय संवतो में सबसे ज्यादा वैज्ञानिकसही तथा त्रुटिहीन हैंशक संवत प्रत्येक साल 22 मार्च को शुरू होता हैंइस दिन सूर्य विश्वत रेखा पर होता हैं तथा दिन और रात बराबर होते हैंशक संवत में साल 365 दिन होते हैं और इसका लीप इयर’ ‘ग्रेगोरियन कैलेंडर’ के साथ-साथ ही पड़ता हैं| ‘लीप इयर’ में यह 23 मार्च को शुरू होता हैं और इसमें ग्रेगोरियन कैलेंडर’ की तरह 366 दिन होते हैं|

पश्चिमी ग्रेगोरियन कैलेंडर’ के साथ-साथशक संवत भारत सरकार द्वारा कार्यलीय उपयोग लाया जाना वाला अधिकारिक संवत हैंशक संवत का प्रयोग भारत के गज़ट’ प्रकाशन और आल इंडिया रेडियो’ के समाचार प्रसारण में किया जाता हैंभारत सरकार द्वारा ज़ारी कैलेंडरसूचनाओ और संचार हेतु भी शक संवत का ही प्रयोग किया जाता हैं|

जहाँ तक शक संवत के ऐतिहासिक महत्त्व कि बात हैंइसे भारत के विश्व विख्यात सम्राट कनिष्क महान ने अपने राज्य रोहण के उपलक्ष्य में चलाया थाकनिष्क एक बहुत विशाल साम्राज्य का स्वामी थाउसका साम्राज्य मध्य एशिया स्थित काला सागर से लेकर पूर्व में उडीसा तक तथा उत्तर में चीनी तुर्केस्तान से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी तक फैला हुआ था|उसके साम्राज्य में वर्तमान उत्तर भारतपाकिस्तानअफगानिस्तानउज्बेकिस्तान के हिस्सा,तजाकिस्तान का हिस्सा और चीन के यारकंदकाशगर और खोतान के इलाके थेकनिष्क भारतीय इतिहास का एक मात्र सम्राट हैं जिसका राज्य दक्षिणी एशिया के बाहर मध्य एशिया और चीन के हिस्सों को समाये थावह इस साम्राज्य पर चार राजधानियो से शासन करता था|पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) उसकी मुख्य राजधानी थीमथुरातक्षशिला और बेग्राम उसकी अन्य राजधानिया थीकनिष्क इतना शक्तिशाली था कि उसने चीन के सामने चीनी राजकुमारी का विवाह अपने साथ करने का प्रस्ताव रखाचीनी सम्राट द्वारा इस विवाह प्रस्ताव को ठुकराने पर कनिष्क ने चीन पर चढाई कर दी और यारकंदकाशगार और खोतान को जीत लिया|

कनिष्क के राज्य काल में भारत में व्यापार और उद्योगों में अभूतपूर्व तरक्की हुई क्योकि मध्य एशिया स्थित रेशम मार्ग जिससे यूरोप और चीन के बीच रेशम का व्यापार होता था उस पर कनिष्क का कब्ज़ा थाभारत के बढते व्यापार और आर्थिक उन्नति के इस काल में तेजी के साथ नगरीकरण हुआइस समय पश्चिमिओत्तर भारत में करीब 60 नए नगर बसे और पहली बार भारत में कनिष्क ने ही बड़े पैमाने सोने के सिक्के चलवाए|

कुषाण समुदाय एवं उनका नेता कनिष्क मिहिर (सूर्य) और अतर (अग्नि) के उपासक थेउसके विशाल साम्राज्य में विभिन्न धर्मो और रास्ट्रीयताओं के लोग रहते थेकिन्तु कनिष्क धार्मिक दृष्टीकोण से बेहद उदार थाउसके सिक्को पर हमें भारतीयईरानी-जुर्थुस्त और ग्रीको-रोमन देवी देवताओं के चित्र मिलते हैंबाद के दिनों में कनिष्क बोद्ध मत के प्रभाव में आ गयाउसने कश्मीर में चौथी बोद्ध संगति का आयोज़न कियाजिसके फलस्वरूप बोद्ध मत कि महायान शाखा का उदय हुआकनिष्क के प्रयासों और प्रोत्साहन से बोद्ध मत मध्य एशिया और चीन में फ़ैल गयाजहाँ से इसका विस्तार जापान और कोरिया आदि देशो में हुआइस प्रकार गौतम बुद्ध,जिन्हें भगवान विष्णु का नवा अवतार माना जाता हैंउनके मत का प्रभाव पूरे एशिया में व्याप्त हो गया और भारत के जगद गुरु होने का उद् घोष विश्व की हवाओ में गूजने लगा|

कनिष्क के दरबार में अश्वघोषवसुबंधु और नागार्जुन जैसे विद्वान थेआयुर्विज्ञानी चरक और श्रुश्रत कनिष्क के दरबार में आश्रय पाते थेकनिष्क के राज्यकाल में संस्कृत सहित्य का विशेष रूप से विकास हुआभारत में पहली बार बोद्ध साहित्य की रचना भी संस्कृत में हुईगांधार एवं मथुरा मूर्तिकला का विकास कनिष्क महान के शासनकाल की ही देन हैं
     
मौर्य एवं मुग़ल साम्राज्य की तरह कुषाण वंश ने लगभग दो शताब्दियों (५०-२५० इस्वी) तक उनके जितने ही बड़े साम्राज्य पर शान से शासन कियाकनिष्क का शासनकाल इसका चर्मोत्कर्ष थाकनिष्क भारतीय जनमानस के दिलो दिमाग में इस कदर बस गया की वह एक मिथक बन गयातह्कीके - हिंद का लेखक अलबरूनी १००० इस्वी के लगभग भारत आया तो उसने देखा की भारत में यह मिथक प्रचलित था कि कनिष्क की ६० पीढियों ने काबुल पर राज किया हैं|कल्हण ने बारहवी शताब्दी में कश्मीर का इतिहास लिखा तो वह भी कनिष्क और उसके बेटे हुविष्क कि उपलब्धियों को बयां करता दिखलाई पड़ता हैंकनिष्क के नाम की प्रतिष्ठा हजारो वर्ष तक कायम रहीयहाँ तक कि भारत के अनेक राजवंशो की वंशावली कुषाण काल तक ही जाती हैं

शक संवत का भारत में सबसे व्यापक प्रयोग अपने प्रिय सम्राट के प्रति प्रेम और आदर का सूचक हैंऔर उसकी कीर्ति को अमर करने वाला हैंप्राचीन भारत के महानतम ज्योतिषाचार्य वाराहमिहिर (५०० इस्वी) और इतिहासकार कल्हण (१२०० इस्वी) अपने कार्यों में शक संवत का प्रयोग करते थेउत्तर भारत में कुषाणों और शको के अलावा गुप्त सम्राट भी मथुरा के इलाके में शक संवत का प्रयोग करते थेदक्षिण के चालुक्य और राष्ट्रकूट और राजा भी अपने अभिलेखों और राजकार्यो में शक संवत का प्रयोग करते थे|

मध्य एशिया कि तरफ से आने वाले कबीलो को भारतीय सामान्य तौर पर शक कहते थे,क्योकि कुषाण भी मध्य एशिया से आये थे इसलिए उन्हें भी शक समझा गया और कनिष्क कुषाण/कसाना द्वारा चलाया गया संवत शक संवत कहलायाइतिहासकार फुर्गुसन के अनुसार अपने कुषाण अधिपतियो के पतन के बाद भी उज्जैन के शको द्वारा कनिष्क के संवत के लंबे प्रयोग के कारण इसका नाम शक संवत पड़ा|

शक संवत की लोकप्रियता का एक कारण इसका उज्जैन के साथ जुड़ाव भी थाक्योकि यह नक्षत्र विज्ञानं और ज्योतिष का भारत में सबसे महत्वपूर्ण केन्द्र थामालवा और गुजरात के जैन जब दक्षिण के तरफ फैले तो वो शक संवत को अपने साथ ले गएजहाँ यह आज भी अत्यंत लोकप्रिय हैंदक्षिण भारत से यह दक्षिण पूर्वी एशिया के कम्बोडिया और जावा तक प्रचलित हो गयाजावा के राजदरबार में तो इसका प्रयोग १६३३ इस्वी तक होता थाजब वहा पहली बार इस्लामिक कैलेंडर को अपनाया गयायहाँ तक कि फिलीपींस से प्राप्त प्राचीन ताम्रपत्रों में भी शक संवत का प्रयोग किया गया हैं

                        शक संवत एवं विक्रमी संवत

शक संवत और विक्रमी संवत में महीनो के नाम और क्रम एक ही हैं- चैत्रबैसाखज्येष्ठ,आसाढ़श्रावणभाद्रपदआश्विनकार्तिकपौषअघन्यमाघफाल्गुनदोनों ही संवतो में दो पक्ष होते हैं- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्षदोनों संवतो में एक अंतर यह हैं कि जहाँ विक्रमी संवत में महीना पूर्णिमा के बाद कृष्ण पक्ष से शुरू होता हैंवंही शक संवत में महीना अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष से शुरू होते हैंउत्तर भारत में दोनों ही संवत चैत्र के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को आरम्भ होते हैंजोकि शक संवत के चैत्र माह की पहली तारीख होती हैंकिन्तु यह विक्रमी संवत के चैत्र की १६ वी तारीख होती हैंक्योकि विक्रमी संवत के चैत्र माह के कृष्ण पक्ष के पन्द्रह दिन बीत चुके होते हैंगुजरात में तो विक्रमी संवत कार्तिक की अमावस्या के अगले दिन से शुरू होता हैं|

                                              सन्दर्भ
  1. U P  Arora , Ancient India: Nurturants of Composite culture,  Papers from The Aligarh Historians Society , Editor Irfan Habib, Indian History Congress, 66th sessions , 2006.
  2. A L Basham, The wonder that was IndiaCalcutta, 1991.
  3. Shri Martand Panchangam, Ruchika Publication, Khari Bawli, Delhi, 2012.
  4. Rama Shankar Tripathi, History of Ancient IndiaDelhi, 1987.
  5. D N Jha & K M Shrimali, Prachin Bharat ka  Itihas, Delhi University, 1991.
  6. Prameshwari lal Gupta, Prachin Bhartiya Mudrae,Varanasi, 1995.
  7. Lalit Bhusan, Bharat Ka Rastriya Sanvat- Saka Sanvat,Navbharat Times, 11 April 2005.
  8. Indian National Calendar- Wikipedia http://en.wikipedia.org/wiki/Indian_national_calendar
  9. The Hindu Calendar System -http://hinduism.about.com/od/history/a/calendar.htm,
  10. Kanishka; the Saka Era, art and literature-http://articles.hosuronline.com/articleD.asp?pID=958&PCat=8
  11. Hindu Calendar- Wikipedia – http://en.wikipedia.org/wiki/Hindu_calendar
                                                                                                          (Dr. Sushil Bhati)


Emperor Kanishk 


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