सोमवार, 30 जनवरी 2017

दीन दुखियों का सहारा श्री देवनारायण: भँवरलाल गुर्जर


भगवान श्रीदेवनारायण जी की जीवन कथा जो बगडावत महाभारत के नाम से प्रसिद्ध महाकाव्य है जिसमे मानव चरित्र के सम्पुर्ण दृष्टांत है बगडावत महाभारत विश्व का एकमात्र महाकाव्य है जो अलिखित रहा है तथा देवनारायण जी के भोपे #पुजारियो )द्वारा गाया जाता रहा है अब यह महाकाव्य लिखित मे उपलब्ध है कथा के अनुसार बगडावत चौहानवंशीय गुर्जर थे जिनका सम्बन्ध सांभर और अजमेर राजपरिवार से है राजा अजैपाळ के पुत्र आद हुऐ आद के पुत्र जुगाद हुऐ जुगाद के पुत्र काजल, काजळ के पुत्र बिसळदेव माण्डळदेव आनादेव हुऐ माँडळदेव के हरिसिहँ रावत और हरिसिहं के पुत्र बाघ सिहँ हुऐ बाघ सिहँ की बारह पत्नियो से चौबिस पुत्र हुऐ जो चौबिस बगडावतो के रुप में प्रसिद्ध है जिनमे से सवाई भौज के पुत्र भगवान देवनारायण थे जिन्हें भगवान विष्णु के अवतार के रुप में पुजा जाता है चौबिस बगडावत बडे पराक्रमी वीर यौद्वा थे जो स्त्रियों का बडा सम्मान करते थे देवनारायण जी का जन्म माघ सुद्वि सप्तमी 968 माना जाता है जिसके अनुसार बगडावत राण के राजा दुर्जनशाल सिहँ के साथ हुए महायुध में 960 में वीरगति को प्राप्त हो गए थे परन्तु कई स्थान पर इतिहास में देवनारायण का जन्म 1243 में उपलब्ध होता है एक दौहा
रुद्र सम्वत पुख चान्दनो मधु मास बुद्व दौज
एको उपर सुन्न है गढीयो रावत भौज!!
जिसके अनुसार इतिहासकारो ने सवाई भौज का जन्म सम्वत 1110 के चैत्र मास की दौज के दिन माना है परन्तु मेरी समझ के अनुसार इतिहासकारो और साहित्यकारो ने इस दौहे का गलत अर्थ लगाया है मेरी समझ से यह दौहा सवाई भौज के गुणो और विशेषताओं को परिभाषित करता है जिसके अनुसार रुद्र (शिव )के समान प्रलयकारी सम्वत (समय )के समान गतिशील पुख (पुष्यनक्षत्र)के समान पवित्र और शुभ  चान्दनो (चन्द्रमा के समान प्रत्येक मन को शीतलता प्रदान करने वाला मधुमास (चैत्रमाह )के समान प्रकृति को उत्कृष्टता प्रदान करने वाला ऐसे गुणो परिपुर्ण सवाई भौज इस संसार में एक मात्र है जिनसे श्रैष्ठ केवल ईश्वर है अर्थात इस प्रकार के गुणो वाला व्यक्ति इस संसार में सवाई भौज के अलावा अन्य कोई व्यक्ति नही है !बगडावत महाभारत कथा बडी रोमांचकारी है कथा मे प्रेम वात्सल्य हास्य व्यग्ंय वीर रस श्रृगांर रस भक्ति रस सम्पुर्ण सामंजस्य है स्त्री सम्मान इस कथा की विशेषता है !
बगडावत भगवान शिव के परम भक्त थे जिन्हें वरदान मे सोना का पौरसा मिला था अर्थात बारह बरस की माया और काया मिली बगडावत महादानी और विद्वानो और कलाकारो का सम्मान करने वाले थे जिन्हौने बजौरी नृतकी को नौ करोड का दान किया था गरीबो को धन लुटाने के लिए रोज घोडो के पैरो मे सोने की मौहरे बान्ध कर घोडे दौडाते थे बगडावतो ने जन कल्याण के लिए कुऐ बावडी और तालाब खुदवाऐ जिससे उनकी कीर्ति चारो दिशाओं में फेलने लगी बगडावत धन का महत्व दान और उपभोग में मानते थे जिसके सम्बन्ध मे कहावत है
माया माणी भली खीच्या भला कबाण
घोडा दोडया भला बहता भला निराण
बगडावत वीर पुरुष थे जौ कभी हार मानने वाले नही थे उनके पास विभिन्न किस्म के घोडे थे जिनमे
कै तो आजिया के गाजिया तुरकी के ताजिया
ओळा कबुतरी कुळा कच्छी भच्छी जा से फिसळ जावे मक्खी
बगडावत ने राण के राजा दुर्जनशाल से मित्रता की परन्तु राजा का विवाह जयमति के साथ करवा कर बगडावतो ने अपने वंश के विनाश को आमन्त्रण दे दिया रानी जयमति के आमन्त्रण पर बगडावत एक स्त्री के सम्मान और अस्मिता के लिए युद्ध के मैदान में कुद गये कथा मे स्त्रियों के बीच आपसी ताने और तंज बडे रोमान्चकारी हैं जब जयमती को बगडावत गोठां में लाते है तो नैया बगडावत की पत्नी नेतु तंज मारती हैं
मांडिया मैल आई राजा रा मिन्दर मालवा थु सत री छोडयाई साळ
झिळतो छोडयाई राणा पडिहार ने अब थे जीवो कतरो काळ
हाथ कगंण गळ बाडलो तेडो तिळक तैयार आ किरे घर री डिकरी बाई सा कस्या बगडावत की नार
हाथ कगंण गळ बाडळो तेडो तिलक तैयार या सोला नेकाडी री डीकरी म्हारा काका नैया जी की नार

कथा बहुत रोमांचक है वीर वात्सल्य रस से पुर्ण है
नैया बगडावत के पुत्र जगा और जगरुप वीर गति को प्राप्त होते हैं तो नेतु नेकाडन भावविह्वल हो जाती हैं
मुछडल्यां महम्मत घणी सा कोयां काली रेख
दोनु कंवर धारोल्या उतरगा वां कवरां ने आख्यां और देख
मैं आई रे बेटाऔ थाकें आरते ओडया भोम दखण का चीर
आज जगंल में डेरा डाल दिया बेटाओ थांकी माता के छुटग्या मोती वरणा नीर
धड टुटगा माथा पडगा रे महारा जौधाओ खेत पडया बडा बडा गज भुप
आज जगंल भला डेरा करया महारा सपुत ओ जगा और जगरुप
नैया बगडावत युद्व में जाते है तो प्रसगं बडा वीरतापूर्ण होता है
तलवारया केसर चुवे भाला चुवे सिन्दुर भारत करे बाघ जी रा सुरमा तो साख भरे कासब सुर
सुरा व्है सन्मुख लडे ओठा धरे न पांव
भारत करे बाघ जी का सुरमा पांच कोस भाग्या बंकट बाकां राव
युद्व में नेवा जी वीरगति को प्राप्त होने के बाद माता साडु आरती के लिए जाती हैं तो नैया जी बिना सिर युद्ध करते है
धड टुटया माथा पड्या म्हारा देवर नैया लाल जी हीया मे आगी आंख
दुनियां डाकी बाजसी छत्री खाण्डो धरत्यां नाख
व्यक्ति के रोम रोम रोष भर देता है
गर्भवती नेतु अपने पेट को चीर कर शिशु को निकाल कर गुरु रुपनाथ को सोप कर सत्ती होती हैं तो प्रसगं सुनकर ममतामय आंसु छलक पडते हैं
लाड कोड घणा आच्छया राखती बेटा
थारा पालणा के हीरा जडाती हजार
चौदाह सो कामणिसां थारा जळवा पुजती रे बेटा म्है गाती मगंळाचार
कथा बडे अजीब से प्रसगं मन को मोह लेते हैं छोछु भाट सावर में जाते है और राजा को बहका कर लाते है और नही आता है तो तजं मारते है
काकड में बावे कागंणी और जाये बाडां में बोदे कपास
घर मे कहियो लुगांया को चाल्ये उण नरां का म्है उजडता देख्या घर बास
देवनारायण जी दुर्जनशाल का वध कर देते है राजा की पुत्री तारां बाई महाबली भुणो जी को ओळमा देती हैं
मोतीचुर का लडु जिमाती दादाभाई सा घी भर देती थाल
बाप दुरजनशाल का माथा कटाता होग्या लुण हराम
तो भुणो जी कहते है
लडु तो जीतु कोईने थे तीन भुवन का नाथ
कोई और म्हारा बाप ने मारतो तो देखता भुणा का दो दो हाथ
इसके बाद सिर जोडकर दुर्जनशाल सिहँ को देवजी जीवनदान देते है और मेवाड का राज्य देते है
सीस जोड सिसोदीया राणा पदवी लगाय
हुकुम करे बाळो देवजी राज करो मेवाड में जाय
देवनारायण जी कथा मन को मोहने वाली है वीर रस श्रगार रस आनन्दीत करते है गाथा की विशेषता स्त्री का सम्मान है देवनारायण जी गरीब कमजोर मजलुम की रक्षा की है यही ईश्वर है! ""

बुधवार, 18 जनवरी 2017

गुर्जर नेताओं की राजनैतिक दशा और दिशा: हिम्मत सिंह गुर्जर

!! हमारें गुर्जर नेताओं की राजनैतिक दशा व दिशा !!!

हमारें देश के 1952 प्रथम चुनाव में जब बाबा साहब अम्बेडकर चुनाव हारे थें और एक अछूत होल्कर  चुनाव जीता तब होल्कर नें बाबा साहब अम्बेडकर से मुलाकात करने गये तो उसने बाबा साहब अम्बेडकर से मुस्कराते हुए कहा कि साहब आज मैं चुनाव जीता हूँ, मुझे वास्तव में बहुत ही खुशी हो रही है !
तब बाबा साहब अम्बेडकर ने कहा कि तुम जीत तो गये तो अब क्या करोगे और तुम्हारा कार्य क्या होगा ? तब होल्कर ने कहा कि मैं क्या करुंगा जो मेरी पार्टी कहेगी वो कहुंगा और करूंगा ! तब बाबा साहब अम्बेडकर ने पूछा कि तुम सामान्य शीट से चुनाव जीते हो ? तो होल्कर ने कहा कि नहीं मैं सुरक्षित शीट से चुनाव जीता हूँ जो आपकी महरबानी से संविधान में दिये गये आपके अधिकार के तहत ही जीता  हूँ ! बाबा साहब अम्बेडकर ने होल्कर को चाय पिलायी !
होल्कर  के जाने के बाद बाबा साहब हंस रहे थे तब नानक चन्द रत्तू ने पूछा कि साहब आप क्यों हंस रहे हो ? तब बाबा साहब अम्बेडकर ने कहा कि होल्कर अपने समाज का नेतृत्व और प्रतिनिधित्व करने के बजाय पार्टी की "नाजायज औलाद ! बन गया है इसलिऐ मुझें हंसी आ रहीं है। दोस्तों
आज कल हमारे समाज के सांसद,विधायक अपने समाज का प्रतिनिधित्व करने के बजाय पार्टियों के की "नाजायज औलाद" के नेता बन कर ही रह गये हैं ! दोस्तों गुर्जर सहित पांच जातियों का विशेष पिछड़ा वर्ग का 5%आरक्षण छिन गया परन्तु सत्ता लोलूप सांसद विधायक व पार्टीयों के पदाधिकारी सब मौन हैं । यह हमारे आरक्षण के मुद्दे को ऐसे नंजर अदाज कर रहैं है जैसें की हमारी पांच जातियों का इस देश व राजस्थान में कोई अस्तित्व ही नहीं हैं परन्तु जब चुनाव का समय आयेगा तो इन्हीं जातियों की दुहाई देकर सच्चे हितेशी बनकर आपके हक व अधिकारों की लडाई लडनें वालें असली योद्दा बननें का सपना दिखाकर विभिन्न पार्टियों से टिकट प्राप्त करने में भी आपकी एकजुटता की ताकत को दिखायेगें तथा आपकी ताकत के बलबुतें पार्टीयों से टिकट प्राप्त तर आपके बीच में आ जायेगें आप ओर हम इनकी सब बातें भूलकर हैं जाति या समाज का नारा देकर लोकसभा व विधानसभा में पहूचा देगें । यह बात बाबा साहब अम्बेडकर ने 1952 में ही कही थी जो आज तक सार्थक सिद्ध हे रही है ! दोस्तों अब समय आ गया हैं ,आज हमारें आरक्षण के मुद्दे पर मौन व्रत रखनें वालें इन मौनी बाबाओं से जवाब लेने का ओर इनका मौन व्रत को "गंगाजल" लेकर तुडवानें का क्या ? आप मेरे इस विचार से सहमत है तो मेरी आप सभी से अपील है कि आपके क्षेत्र के सांसद ओर विधायक जो आपके वोटों से जीतें है वो चाहें गुर्जर जाति से हों या अन्य जाति से सभी के निवास जाये वहाँ जाकर धरना प्रर्दशन शान्तिपूर्ण करें ओर उनसे अभी तक हमारें आरक्षण पर मौन रहनें का कारण पर सवाल जरूर करें ।यदि आप ऐसा करतें है तो भविष्य में आपके अधिकारों पर लडनें वालें असली योद्दा की पहचान कर सकतें हों । यदि आप मेरे इस विचार से सहमत है तो मेरी इस पोस्ट को ज्यादा-ज्यादा शेयर करों भाई । धन्यवाद         निदेदक:-हिम्मत सिंह गुर्जर                         (प्रदेश प्रवक्ता) राजस्थान गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति

🙏🙏🙏🙏🙏

सोमवार, 16 जनवरी 2017

The Third Battle Of Panipat was fought on this day in the year 1761 : Manish Dorata Gurjar

14th January..
Makar Sankrant..
One of the most unfortunate day in the history of India especially Maharashtra.

The Third Battle Of Panipat was fought on this day in the year 1761.

The most sordid part of the third battle of Panipat is the irresponsible conduct of Peshwa family. They sowed the seeds of misunderstanding, jealousy and hatred amongst Maratha Sardars. They also humiliated and insulted Rajputs, Jats, Gujars, Shikhs  and other natural allies.

Not only that,  when the Maratha Sardars and soldiers were preparing against all odds for the mother of all the battles, 42 years old Nanasaheb Peshwa was busy in marrying and celebrating yet an another marriage with an eight years old girl, who he made a widow for her  entire life along with other wives within a month.

The men and women belonging to the Peshwa Household including Nana Fadanvis  were spending exorbitant  amounts of money on their so called luxurious religious picnics in North while Maratha soldiers were going hungry on the banks of Jumna.

Sadashivrao Peshwa ignored and rejected wise strategic advice given by veteran Maratha Sardars and Surajmal Jat. 

Vishwasrao Peshwa who was enjoying and entertaining himself watching the fun of the war on an elephant from a safe distance  died because of a stray bullet.

Sadashivbrao Peshwa cowardly  ran away from the battlefield to save his own life.

Indeed, the brave Marathas were destined to a disastrous defeat on the battlefield of Panipat in 1761. Thousands of Marathas died fighting on battlefield. Thousands of Marathas were made prisoners of war and were taken to  Baluchisthan (where their descendants live today). Thousands of Marathas were exiled in Haryana (where their descendants live today).

Unfortunately, after that, atrocities of Peshwas became more and more atrocious in Maharashtra.

Salute to the brave Marathas who fought against all odds on the battlefield of Panipat for the freedom and safety of our nation. __/|\__.

Info Courtesy:Mr.Manish Dorata Gurjar

रविवार, 15 जनवरी 2017

गारी, गायरी, गाडरी, भारुड़, भरवाड़ जातियां मूलतः गुर्जर है: चंद्रसिंह गुर्जर

मेवाड़ा गायरी/गुर्जर/गारी/गाडरी/भारवाड़/भारुड़ - जाति एक नाम अनेक ये सभी वीर गुर्जर है। जोकि मेवाड़ मूल के है या मेवाड़ से निकले है। जो पशुपालन के कारण इतने नामों मे बटे है।

गुर्जर कितनी बड़ी जाती है यह अब पता चला है गायरी गुर्जर समाज के भाइयों को अभी भी नहीं पता है कि हम कितने हैं जो 100 किलोमीटर तक ही अपनी सीमा निर्धारित कर चुके वह समाज को नहीं पता कि हम गुर्जर हैं। 250-300 किमी के बीच 3 नामों में बटा समाज कितना अशिक्षित है इसकी कल्पना की जा सकती है। मेवाड़ - मेवाड़ा गाडरी/गायरी 2. मालवा - चौधरी ( मेवाड़ा गारी/गायरी) 3. हाड़ोती - गुर्जर (गायरी गुर्जर) गुर्जर कितनी बड़ी जाति एवं कौम है यह गायरी को आज तक नहीं पता है वह तो बस अपने को गायरी गुर्जर बोल देता है। और ज्यादा जीरह करो तो गायरी और गुर्जर दो भाई है, यह कह कर बात खत्म, और दन्त कहानी सुनने को मिलेगी की गायरी गाय के गर्भ से और गुर्जर उसकी जर से हुऐ हैं। जिस पर सिर्फ हंसी आती है। बल्कि ऐसा नहीं है, गुर्जर का संधि विच्छेद होता है - गुर्+जर जिसका अर्थ शत्रु विनाशक होता है, समाज के युवा भाईयो आज युवाओं का कर्तव्य है कि हमारा गायरी गुर्जर समाज एक हो। हम उस वीर गुर्जर जाति से है। जिसका उल्लेख इतिहास की हर किताब में मिलेगा । ऐसा कोई इतिहासकार नही है जो गुर्जर जाति का उल्लेख ना करता हो। गुर्जर नाम के बिना इतिहास अधूरा है। ज्यादातर विदेशी इतिहासकारो ने गुर्जर इतिहास और उनकी वीरता का उल्लेख किया है।

जय श्री देवनारायण

अन्तराष्ट्रीय गुर्जर दिवस (22 मार्च - नव शक संवत्सर): डॉ. सुशिल भाटी

अन्तराष्ट्रीय गुर्जर दिवस (२२ मार्च - नव शक संवत्सर)
डा. सुशील भाटी
गुर्जर इस मायने में एक अन्तराष्ट्रीय समुदाय हैं कि यह भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान और मध्य एशिया के कुछ देशो में अविस्मरणीय काल से रहते आ रहा हैं|
इनका इतिहास ईसा की पहली तीन शताब्दियों (0- 300 ईस्वी) के कुषाण साम्राज्य काल तक जाता हैं| कुषाणों में कनिष्क सबसे प्रतापी सम्राट हुआ हैं जिसने एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया| कनिष्क के साम्राज्य में लगभग वो सभी देश आते थे जहाँ आज गुर्जरो की आबादिया हैं| उसका साम्राज्य मध्य एशिया स्थित काला सागर से लेकर पूर्व में उडीसा तक तथा उत्तर में चीनी तुर्केस्तान से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी तक फैला हुआ था| उसके साम्राज्य में वर्तमान उत्तर भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान का एक हिस्सा, तजाकिस्तान का हिस्सा और चीन के यारकंद, काशगर और खोतान के इलाके थे| कनिष्क भारतीय इतिहास का एक मात्र सम्राट हैं जिसका राज्य दक्षिणी एशिया के बाहर मध्य एशिया और चीन के हिस्सों को समाये हुए था| वह इस साम्राज्य पर चार राजधानियो से शासन करता था| आधुनिक पाकिस्तान स्थित पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) उसकी मुख्य राजधानी थी| मथुरा (भारत), तक्षशिला और बेग्राम (अफगानिस्तान) उसकी अन्य राजधानिया थी|
आर्केलोजिकल सर्वे आफ इंडिया के पहले महानिदेशक अलेक्जेंडर कनिघंम ने आर्केलोजिकल सर्वे रिपोर्ट 1864 में कुषाणों की पहचान आधुनिक गुर्जरों से की है और उसने माना है कि गुर्जरों के कसाना गौत्र के लोग कुषाणों के वर्तमान प्रतिनिधि है। उसकी बात का महत्व इस बात से और बढ़ जाता है कि गुर्जरों का कसाना गोत्र क्षेत्र विस्तार एवं संख्याबल की दृष्टि से सबसे बड़ा है। कसाना गौत्र अफगानिस्तान से महाराष्ट्र तक फैला है और भारत में केवल गुर्जर जाति में मिलता है।
गुर्जरों के सबसे पहले राज्य “गुर्जर देश” की राजधानी भिनमाल के इतिहास से कुषाण सम्राट कनिष्क के साथ एक गहरा नाता हैं| जिससे गुर्जरों को कुषाणों से जोड़ा जाना सही साबित होता हैं| सातवी शताब्दी में भारत में गुर्जरों की राजनैतिक शक्ति का उभार हुआ| उस समय आधुनिक राजस्थान गुर्जर देश कहलाता था| इसकी राजधानी दक्षिणी राजस्थान में स्थित भिनमाल थी| भिनमाल के विकास में कनिष्क का बहुत बड़ा योगदान था| प्राचीन भिनमाल नगर में सूर्य देवता के प्रसिद्ध जगस्वामी मन्दिर का निर्माण काश्मीर के राजा कनक (सम्राट कनिष्क) ने कराया था। मारवाड़ एवं उत्तरी गुजरात कनिष्क के साम्राज्य का हिस्सा रहे थे। कनिष्क ने वहाँ ‘करडा’ नामक झील का निर्माण भी कराया था। भिनमाल से सात कोस पूर्व ने कनकावती नामक नगर बसाने का श्रेय भी कनिष्क को दिया जाता है।
गुर्जरों के पूर्वज सम्राट कनिष्क ने शक संवत के नाम से एक नए संवत शरू किया जो आज भी भारत में चल रहा हैं| शक संवत संवत को सम्राट कनिष्क ने अपने राज्य रोहण के उपलक्ष्य में 78 ईस्वी में चलाया था| इस संवत कि पहली तिथि चैत्र के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (22 मार्च) होती हैं जोकि विश्व विख्यात सम्राट कनिष्क महान के राज्य रोहण की वर्ष गाठ हैं|
प्राचीन काल में यह संवत भारत में सबसे अधिक प्रयोग किया जाता था| भारत में शक संवत का व्यापक प्रयोग अपने प्रिय सम्राट के प्रति प्रेम और आदर का सूचक हैं और उसकी कीर्ति को अमर करने वाला हैं| प्राचीन भारत के महानतम ज्योतिषाचार्य वाराहमिहिर (500 इस्वी) और इतिहासकार कल्हण (1200 इस्वी) अपने कार्यों में शक संवत का प्रयोग करते थे| उत्तर भारत में कुषाणों और शको के अलावा गुप्त सम्राट भी मथुरा के इलाके में शक संवत का प्रयोग करते थे| दक्षिण के चालुक्य और राष्ट्रकूट और राजा भी अपने अभिलेखों और राजकार्यो में शक संवत का प्रयोग करते थे|
गुर्जरों के पूर्वज कनिष्क ने एक अंतराष्ट्रीय साम्राज्य का निर्माण किया और वहाँ एक सार्वदेशिक संस्कृति (Cosmopolitan culture) का विकास किया| आज भी कनिष्क के व्यक्तित्व और कुषाण साम्राज्य की विश्व में एक पहचान हैं|
अतः कनिष्क के राज्य रोहण दिवस २२ मार्च को अंतराष्ट्रीय गुर्जर दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए |
सन्दर्भ
1. भगवत शरण उपाध्याय, भारतीय संस्कृति के स्त्रोत, नई दिल्ली, 1991,
2. रेखा चतुर्वेदी भारत में सूर्य पूजा-सरयू पार के विशेष सन्दर्भ में (लेख) जनइतिहास शोध पत्रिका, खंड-1 मेरठ, 2006
3. ए. कनिंघम आरकेलोजिकल सर्वे रिपोर्ट, 1864
4. के. सी.ओझा, दी हिस्ट्री आफ फारेन रूल इन ऐन्शिऐन्ट इण्डिया, इलाहाबाद, 1968
5. डी. आर. भण्डारकर, फारेन एलीमेण्ट इन इण्डियन पापुलेशन (लेख), इण्डियन ऐन्टिक्वैरी खण्ड X L 1911
6. जे.एम. कैम्पबैल, भिनमाल (लेख), बोम्बे गजेटियर खण्ड 1 भाग 1, बोम्बे, 1896
7. विन्सेंट ए. स्मिथ, दी ऑक्सफोर्ड हिस्टरी ऑफ इंडिया, चोथा संस्करण, दिल्ली, 1990.

22 मार्च को अंतराष्ट्रीय गुर्जर दिवस के रूप में क्यों मनाये ? : डॉ. सुशिल भाटी

22 मार्च को अंतराष्ट्रीय गुर्जर दिवस के रूप में क्यों मनाये ?

डा. सुशील भाटी

1 गुर्जर इस मायने में एक अंतराष्ट्रीय समुदाय हैं कि यह अज्ञात काल से भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान और कुछ मध्य एशियाई देशो में निवास कर रहा हैं| क्योकि गुर्जर एक अंतराष्ट्रीय समुदाय हैं तो इसका एक अंतराष्ट्रीय दिवस भी होना चाहिये|

2 ऐतिहासिक तोर पर कनिष्क द्वारा स्थापित कुषाण साम्राज्य गुर्जर कौम का प्रतिनिधित्व करता हैं| यह साम्राज्य भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान आदि उन सभी देशो में फैला हुआ था जहाँ आज गुर्जर रहते हैं| कुषाण साम्राज्य की एक राजधानी मथुरा, भारत में तथा दूसरी पेशावर, पाकिस्तान में थी| तक्षशिला और बेग्राम, अफगानिस्तान में इसकी अन्य राजधानी थी|

3 मशहूर पुरात्वेत्ता एलेग्जेंडर कनिंघम इतिहास प्रसिद्ध कुषाणों की पहचान आधुनिक गुर्जरों से की हैं| उनके अनुसार गुर्जरों का कसाना गोत्र कुषाणों का वर्तमान प्रतिनिधि हैं|

4 कनिष्क के साम्राज्य का एक अंतराष्ट्रीय महत्व हैं, दुनिया भर के इतिहासकार इसमें अकादमिक रूचि रखते हैं| प्राचीन काल  का अंतराष्ट्रीय व्यापर मार्ग जिसे रेशम मार्ग कहा जाता था कुषाणों के नियंत्रण में था गुर्जरों के पूर्वजों अर्थात कुषाण परिसंघ के लोगो ने अपने साम्राज्य में एक सार्वदेशिक संस्कृति का पोषण किया | कुषाण साम्राज्य के अतरिक्त गुर्जरों से सम्बंधित कोई अन्य साम्राज्य नहीं हैं जोकि पूरे दक्षिणी एशिया में फैले गुर्जर समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इससे अधिक उपयुक्त हो| यहाँ तक की मिहिर भोज द्वारा स्थापित प्रतिहार साम्राज्य केवल उत्तर भारत तक सीमित था तथा पश्चिमिओत्तर में करनाल इसकी बाहरी सीमा थी|

5 अधिकांश इतिहासकारों के अनुसार कनिष्क ने अपने राज्य रोहण के अवसर पर 78 ईस्वी में शक संवत प्रारम्भ किया| शक संवत प्रत्येक वर्ष 22 मार्च को आरम्भ होता हैं, अतः 22 मार्च कनिष्क के राज्य रोहण की तिथि हैं| दक्षिणी एशिया विशेष रूप से गुर्जरों के के प्राचीन इतिहास में यह एक मात्र तिथि हैं जिसे अंतराष्ट्रीय रूप से मान्य पूरी दुनिया में प्रचलित जूलियन कलेंडर  के हिसाब से निश्चित किया जा सकता हैं| अतः अन्य पंचांगों पर आधारित तिथियों की विपरीत यह भारत, पाकिस्तान अफगानिस्तान अथवा अन्य जगह जहा भी गुर्जर निवास करते हैं यह एक  ही रहेगी|

6 गुर्जरों का पूर्वज कनिष्क ने एक सार्वदेशिक संस्कृति से संपन्न अंतराष्ट्रीय साम्राज्य का स्वामी था| कनिष्क का इतिहास आज भी दुनिया भर के इतिहाकारो को आकर्षित करता हैं| कनिष्क की आज भी एक अंतराष्ट्रीय पहचान हैं| अतः कनिष्क के राज्य रोहण की तिथि 22 मार्च अंतराष्ट्रीय गुर्जर दिवस मनाने के लिए उपयुक्त हैं|

गुर्जर आरक्षण आंदोलन सामाजिक न्याय की लड़ाई है : भंवर मेघवंशी

गुर्जर आरक्षण आन्दोलन सामाजिक न्याय की लड़ाई है ,जिसे  हमारा पूरा समर्थन -मेघवंशी

जयपुर|

" यह सर्वविदित है कि  राजस्थान का गुर्जर समुदाय शैक्षणिक ,सामाजिक ,आर्थिक एवं राजनीतिक रूप से एक पिछड़ा हुआ समूह है ,जिसे सदियों से वंचना का शिकार होना पड़ा है.उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिये विशेष पिछड़े वर्ग के आरक्षण का लाभ दिया जाना बेहद जरूरी है "

उपरोक्त बात आज गुर्जर आरक्षण आन्दोलन का समर्थन करते हुये दलित बहुजन चिन्तक भंवर मेघवंशी ने कही है.मेघवंशी ने कहा है कि गुर्जरों के आरक्षण  का आन्दोलन सिर्फ रोजगार या नौकरियों की मांग नहीं है ,यह सामाजिक न्याय की मांग का आन्दोलन है,जिसको हमारा पूरा समर्थन है.

मेघवंशी ने राजस्थान के गुर्जर समाज की मांग को जायज करार देते हुये कहा कि तुरंत कानूनन गुर्जर ,बंजारा ,देवासी तथा गाड़िया लौहार समुदाय के विशेष पिछड़े वर्ग के आरक्षण पुन: बहाल किया
किया जाये तथा उसे संविधान की 9 वीं अनुसूचि में शामिल करवा कर संवैधानिक स्वरूप दे दिया जाये.जब तक उन्हें एसबीसी का दर्जा बहाल नहीं होता है ओबीसी का लाभ दिया जाये.साथ ही देवनारायण योजना सहित अन्य लाभ यथावत रखे जायें.

दलित ,आदिवासी और घुमन्तू तबकों के लिये लम्बे समय से कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता मेघवंशी ने कहा है कि सामाजिक न्याय के इस संघर्ष में गुर्जर समुदाय के 72 लोगो ने अपनी जानें गंवाई है. सैकड़ों लोग मुकदमें अभी तक झेल रहे है.हजारों लोग जेलों में सड़े है ,उन्हें अपने संघर्ष का प्रतिफल मिलना ही चाहिये.

बहुजन चिन्तक भंवर मेघवंशी ने गुर्जर आरक्षण आन्दोलन के नेतृत्वकर्ताओं से यह अपील की है कि वे शांतिपूर्ण और अहिंसक आन्दोलन की मिसाल पेश करें ताकि देश की सम्पत्ति को नुकसान नहीं हो तथा  आम नागरिकों को कोई परेशानी नहीं उठानी पड़े