सोमवार, 30 जनवरी 2017

दीन दुखियों का सहारा श्री देवनारायण: भँवरलाल गुर्जर


भगवान श्रीदेवनारायण जी की जीवन कथा जो बगडावत महाभारत के नाम से प्रसिद्ध महाकाव्य है जिसमे मानव चरित्र के सम्पुर्ण दृष्टांत है बगडावत महाभारत विश्व का एकमात्र महाकाव्य है जो अलिखित रहा है तथा देवनारायण जी के भोपे #पुजारियो )द्वारा गाया जाता रहा है अब यह महाकाव्य लिखित मे उपलब्ध है कथा के अनुसार बगडावत चौहानवंशीय गुर्जर थे जिनका सम्बन्ध सांभर और अजमेर राजपरिवार से है राजा अजैपाळ के पुत्र आद हुऐ आद के पुत्र जुगाद हुऐ जुगाद के पुत्र काजल, काजळ के पुत्र बिसळदेव माण्डळदेव आनादेव हुऐ माँडळदेव के हरिसिहँ रावत और हरिसिहं के पुत्र बाघ सिहँ हुऐ बाघ सिहँ की बारह पत्नियो से चौबिस पुत्र हुऐ जो चौबिस बगडावतो के रुप में प्रसिद्ध है जिनमे से सवाई भौज के पुत्र भगवान देवनारायण थे जिन्हें भगवान विष्णु के अवतार के रुप में पुजा जाता है चौबिस बगडावत बडे पराक्रमी वीर यौद्वा थे जो स्त्रियों का बडा सम्मान करते थे देवनारायण जी का जन्म माघ सुद्वि सप्तमी 968 माना जाता है जिसके अनुसार बगडावत राण के राजा दुर्जनशाल सिहँ के साथ हुए महायुध में 960 में वीरगति को प्राप्त हो गए थे परन्तु कई स्थान पर इतिहास में देवनारायण का जन्म 1243 में उपलब्ध होता है एक दौहा
रुद्र सम्वत पुख चान्दनो मधु मास बुद्व दौज
एको उपर सुन्न है गढीयो रावत भौज!!
जिसके अनुसार इतिहासकारो ने सवाई भौज का जन्म सम्वत 1110 के चैत्र मास की दौज के दिन माना है परन्तु मेरी समझ के अनुसार इतिहासकारो और साहित्यकारो ने इस दौहे का गलत अर्थ लगाया है मेरी समझ से यह दौहा सवाई भौज के गुणो और विशेषताओं को परिभाषित करता है जिसके अनुसार रुद्र (शिव )के समान प्रलयकारी सम्वत (समय )के समान गतिशील पुख (पुष्यनक्षत्र)के समान पवित्र और शुभ  चान्दनो (चन्द्रमा के समान प्रत्येक मन को शीतलता प्रदान करने वाला मधुमास (चैत्रमाह )के समान प्रकृति को उत्कृष्टता प्रदान करने वाला ऐसे गुणो परिपुर्ण सवाई भौज इस संसार में एक मात्र है जिनसे श्रैष्ठ केवल ईश्वर है अर्थात इस प्रकार के गुणो वाला व्यक्ति इस संसार में सवाई भौज के अलावा अन्य कोई व्यक्ति नही है !बगडावत महाभारत कथा बडी रोमांचकारी है कथा मे प्रेम वात्सल्य हास्य व्यग्ंय वीर रस श्रृगांर रस भक्ति रस सम्पुर्ण सामंजस्य है स्त्री सम्मान इस कथा की विशेषता है !
बगडावत भगवान शिव के परम भक्त थे जिन्हें वरदान मे सोना का पौरसा मिला था अर्थात बारह बरस की माया और काया मिली बगडावत महादानी और विद्वानो और कलाकारो का सम्मान करने वाले थे जिन्हौने बजौरी नृतकी को नौ करोड का दान किया था गरीबो को धन लुटाने के लिए रोज घोडो के पैरो मे सोने की मौहरे बान्ध कर घोडे दौडाते थे बगडावतो ने जन कल्याण के लिए कुऐ बावडी और तालाब खुदवाऐ जिससे उनकी कीर्ति चारो दिशाओं में फेलने लगी बगडावत धन का महत्व दान और उपभोग में मानते थे जिसके सम्बन्ध मे कहावत है
माया माणी भली खीच्या भला कबाण
घोडा दोडया भला बहता भला निराण
बगडावत वीर पुरुष थे जौ कभी हार मानने वाले नही थे उनके पास विभिन्न किस्म के घोडे थे जिनमे
कै तो आजिया के गाजिया तुरकी के ताजिया
ओळा कबुतरी कुळा कच्छी भच्छी जा से फिसळ जावे मक्खी
बगडावत ने राण के राजा दुर्जनशाल से मित्रता की परन्तु राजा का विवाह जयमति के साथ करवा कर बगडावतो ने अपने वंश के विनाश को आमन्त्रण दे दिया रानी जयमति के आमन्त्रण पर बगडावत एक स्त्री के सम्मान और अस्मिता के लिए युद्ध के मैदान में कुद गये कथा मे स्त्रियों के बीच आपसी ताने और तंज बडे रोमान्चकारी हैं जब जयमती को बगडावत गोठां में लाते है तो नैया बगडावत की पत्नी नेतु तंज मारती हैं
मांडिया मैल आई राजा रा मिन्दर मालवा थु सत री छोडयाई साळ
झिळतो छोडयाई राणा पडिहार ने अब थे जीवो कतरो काळ
हाथ कगंण गळ बाडलो तेडो तिळक तैयार आ किरे घर री डिकरी बाई सा कस्या बगडावत की नार
हाथ कगंण गळ बाडळो तेडो तिलक तैयार या सोला नेकाडी री डीकरी म्हारा काका नैया जी की नार

कथा बहुत रोमांचक है वीर वात्सल्य रस से पुर्ण है
नैया बगडावत के पुत्र जगा और जगरुप वीर गति को प्राप्त होते हैं तो नेतु नेकाडन भावविह्वल हो जाती हैं
मुछडल्यां महम्मत घणी सा कोयां काली रेख
दोनु कंवर धारोल्या उतरगा वां कवरां ने आख्यां और देख
मैं आई रे बेटाऔ थाकें आरते ओडया भोम दखण का चीर
आज जगंल में डेरा डाल दिया बेटाओ थांकी माता के छुटग्या मोती वरणा नीर
धड टुटगा माथा पडगा रे महारा जौधाओ खेत पडया बडा बडा गज भुप
आज जगंल भला डेरा करया महारा सपुत ओ जगा और जगरुप
नैया बगडावत युद्व में जाते है तो प्रसगं बडा वीरतापूर्ण होता है
तलवारया केसर चुवे भाला चुवे सिन्दुर भारत करे बाघ जी रा सुरमा तो साख भरे कासब सुर
सुरा व्है सन्मुख लडे ओठा धरे न पांव
भारत करे बाघ जी का सुरमा पांच कोस भाग्या बंकट बाकां राव
युद्व में नेवा जी वीरगति को प्राप्त होने के बाद माता साडु आरती के लिए जाती हैं तो नैया जी बिना सिर युद्ध करते है
धड टुटया माथा पड्या म्हारा देवर नैया लाल जी हीया मे आगी आंख
दुनियां डाकी बाजसी छत्री खाण्डो धरत्यां नाख
व्यक्ति के रोम रोम रोष भर देता है
गर्भवती नेतु अपने पेट को चीर कर शिशु को निकाल कर गुरु रुपनाथ को सोप कर सत्ती होती हैं तो प्रसगं सुनकर ममतामय आंसु छलक पडते हैं
लाड कोड घणा आच्छया राखती बेटा
थारा पालणा के हीरा जडाती हजार
चौदाह सो कामणिसां थारा जळवा पुजती रे बेटा म्है गाती मगंळाचार
कथा बडे अजीब से प्रसगं मन को मोह लेते हैं छोछु भाट सावर में जाते है और राजा को बहका कर लाते है और नही आता है तो तजं मारते है
काकड में बावे कागंणी और जाये बाडां में बोदे कपास
घर मे कहियो लुगांया को चाल्ये उण नरां का म्है उजडता देख्या घर बास
देवनारायण जी दुर्जनशाल का वध कर देते है राजा की पुत्री तारां बाई महाबली भुणो जी को ओळमा देती हैं
मोतीचुर का लडु जिमाती दादाभाई सा घी भर देती थाल
बाप दुरजनशाल का माथा कटाता होग्या लुण हराम
तो भुणो जी कहते है
लडु तो जीतु कोईने थे तीन भुवन का नाथ
कोई और म्हारा बाप ने मारतो तो देखता भुणा का दो दो हाथ
इसके बाद सिर जोडकर दुर्जनशाल सिहँ को देवजी जीवनदान देते है और मेवाड का राज्य देते है
सीस जोड सिसोदीया राणा पदवी लगाय
हुकुम करे बाळो देवजी राज करो मेवाड में जाय
देवनारायण जी कथा मन को मोहने वाली है वीर रस श्रगार रस आनन्दीत करते है गाथा की विशेषता स्त्री का सम्मान है देवनारायण जी गरीब कमजोर मजलुम की रक्षा की है यही ईश्वर है! ""

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