शनिवार, 29 जुलाई 2017

1857 की क्रांति का जनक कोतवाल धन सिंह गुर्जर

मेरठ जिले में अवस्थित गाँव घाट पाँचली गुर्जर बहुल है। ऐसी मान्यता है कि धनसिंह गुर्जर उर्फ धनसिंह कोतवाल इस गाँव के किसान परिवार से सम्बन्धित थे। मेरठ में 10 मई की संध्या को जैसे ही क्रांति का प्रस्फूटन हुआ धनसिंह गुर्जर ने परोक्षतः किन्तु सक्रिय रूप से उसमें अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। 10 मई, 1857 को मेरठ में क्रांतिकारी सैनिकों के साथ पुलिस ने भी ब्रितानियों के खिलाफ क्रांतिकारी घटनाओं को अंजाम दिया।
यद्यपि विप्लव का प्रस्फुटन 10 मई को सायंकाल 5 व 6 बजे के मध्य हुआ था परन्तु दोपहर से ही विप्लव की अफवाह मेरठ तथा निकटवर्ती गाँवों में फैलनी शुरूहो गयी थी और मेरठ के पास के गाँवों के ग्रामीण मेरठ की सदर कोतवाली क्षेत्र में जमा होने लगे थे। इन गाँवों मे घाट पाँचली, गंगोल, नंगला इत्यादि प्रमुख थे। सदर कोतवाली में उस दिन धन सिंह कार्यवाहक प्रभाती के पद पर कार्यरत थे। व्यक्तित्व, पुलिस विभाग में उच्च पर कार्यरत एवं स्थानीय होने के कारण क्रांतिकारी ग्रामीणों का उनको जल्दी ही विश्वास प्राप्त हो गया।
उन्होंने 10 मई, 1857 को मेरठ की क्रांतिकारी जनता का नेतृत्व किया। इस क्रांतिकारी भीड़ ने रात्रि में दो बजे मेरठ जेल पर हमला कर दिया और जेल तोड़कर 839 कैदियों को छुड़ा कर जेल में आग लगा दी। जेल से छुड़ाये हुए अनेक कैदी भी क्रांति में शामिल हो गये। इससे पहले की पुलिस नेतृत्व में क्रांतिकारी जनता ने मेरठ शहर व कैन्ट क्षेत्र में विप्लवकारी घटनाओं को अंजाम देना शुरू कर दिया था।
क्रांति के दमन के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने 10 मई, 1857 को मेरठ में हुई विप्लवकारी घटनाओं में पुलिस की भूमिका की जांच के लिए मेजर विलियम्स की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया। मेजर विलियम्स ने उस दिन की घटनाओं का विभिन्न गवाहियों के आधार पर गहन अध्ययन किया और इस सम्बन्ध में एक स्मरण पत्र तैयार किया। उसका माना था कि यदि धनसिंह ने अपनी ड्युटी ठीक प्रकार से निभाई होती तो सम्भवतः मेरठ में जनता को भड़कने से रोका जा सकता था। एक गवाही के अनुसार क्रांतिकारियों ने कहा कि धनसिंह ने उन्हें स्वयं आसपास के गाँव से बुलवाया था।
नवम्बर, 1858 में विलियम्स ने विप्लव से सम्बन्धित एक रिपोर्ट नोर्थ वैस्टर्न प्रान्त (आधुनिक उत्तर प्रेदश) सरकार के सचिव को भेजी। इस रिपोर्ट में मेट छावनी से सैनिक विप्लव का मुख्य कारण चर्बी वाले कारतूस और हड्‌डियों के चूर्ण वाले आटे की अफवाह को माना गया। इस रिपोर्ट में अयोध्या से आये एक साधु की संदिग्ध गतिविधियों की ओर भी इशारा किया गया। यह माना गया कि विद्रोही सैनिक, मेरठ की पुलिस व जनता तथा निकटवर्ती गाँवों के ग्रामीण इस साधु के सम्पर्क में थे। मेजर विलियम्स को दी गयी एक गवाही के अनुसार धनसिंह स्वयं उस साधु से उसके सूरजकुण्ड ठिकाने पर मिले थे। यद्यपि यह नहीं कहा जा सकता है कि यह मुलाकात सरकारी थी अथवा नहीं, परन्तु दोनों में सम्पर्क था, इसे इन्कार नहीं किया जा सकता। इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि- 10 मई को जिस समय सैनिकों ने विद्रोह किया, ठीक उसी समय सदर बाजार में पहले से एकत्र भीड़ ने भी विप्लकारी गतिविधियाँ शुरू कर दीं। उस दिन कई स्थानों पर सिपाहियों पर क्रांतिकारी भीड़ का नेतृत्व करते देखा गया।
1857 के विप्लव से पूर्व एक अन्य घटना भी घटित हुई थी जिसके कारण धन्नसिंह गुर्जर तथा पाँचली के ग्रामीण ब्रितानियों से धृणा करने लगे थे। इस घटना से सम्बन्धित किंवदन्ती चली आ रही है कि-अप्रेल के महीने में किसान गेहूँ की पकी हुई फसल को उठाने के लिए खेतों में काम कर रहे थे। एक दिन दोपरह के समय दो ब्रिटिश तथा एक मेम गाँव पाँचली के निकट एक आम के बाग में आराम करने के लिए रूक गये। इसी बाग के समीप पाँचली के तीन किसान जिनके नाम मंगत, नरपत और झज्जड़ थे, अपने खेतों में कृषि कार्य कर रहे थे। आराम करते हुए ब्रितानियों ने इन ग्रामीणों को देखकर पानी पिलाने के लिए कहा। किसी कारणवश इन किसानों की ब्रितानियों से कहा-सुनी हो गयी। उन ग्रामीणों ने एक ब्रिटिश तथा मेम को पकड़ लिया जबकि दूसरा ब्रिटिश वहाँ से भागने में सफल रहा। कहा जाता है उन तीनों ग्रामीणों ने उस ब्रिटिश के हाथ-पैर बाँधकर गर्म रेत में डाल दिया और मेम से जबरन दाँय हँकवायी। कुछ समय पश्चात् भागा हुआ ब्रिटिश कुछ सिपाहियों के साथ लौटा लेकिन तब तक वे किसान वहाँ से भाग चुके थे। ब्रितानियों ने धन्नासिंह के पिता मुकददम मोहर सिहँ, जो गाँव के सरपंच थे, को दोषियों को पकड़ने की जिम्मेदारी सोंपी तथा कहा कि यदि वे तीनों किसान पकड़कर उनके हवाले नहीं किये गये तो सजा गाँव वालों को और सरपंच को दी जायेगी। भय के कारण अनेक किसान गाँव से भाग गये। अधिक दाबाव के कारण नरपत और झज्जड़ ने तो समर्पण कर दिया लेकिन मंगत फरार ही रहे। उन दोनों को 30-30 कोड़े की सजा दी गयी तथा जमीन से बेदखल कर दिया गया। मंगत के परिवार के तीन सदस्यों को फाँसी पर लटका दिया गया। सरपंच को मंगत को न पकड़ पाने के आरोप में 6 माह के कारावास की सजा दी गयी। इस घटना से ग्रामीणों में ब्रितानियों के प्रति अत्यधिक घृणा उत्पन्न हो गयी। अतः जैसे ही मेरठ में क्रांति की शुरूआत हुई कोतवाल धनसिंह तथा घाट पाँचली के जुर्जरों ने उसमें बढ़-चढ़ कर भाग लिया। प्रतिक्रांति के दौरान 14 जुलाई, 1857 को प्रातः 4 बजे घाट पाँचली पर खाकी रिसाले ने तोपों के साथ हमला किया। रिसाले में 56 घुड़सवार, 38 पैदल सिपाही और 10 तोपची थे। इस संघर्ष में अनेक किसान मारे गये। आचार्य दीपांकर द्वारा लिखित 'स्वाधीनता आन्दोल और मेरठ' में घाट पाँचली के 80 व्यक्तियों को फाँसी दिये जाने का वर्णन है।

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