शुक्रवार, 30 मार्च 2018

जानो कौन है गुर्जर त्रिमूर्ति

Let's celebrate 22 March as International Gurjar Day 🙏
गौर करना होगा समाज को , जागरूक युवाओ को। क्योंकि समाज में इनके ये ढाई चावल परोसे हुए युवाओ  को भ्रमित ही करेंगे,हम कभी भी अपना वास्तवित इतिहास नहीं जान  पायेंगे कि कैसे कुषाणो ने आधा एशिया जीता ,शको को भी सामंत बनाया ,चीन को हराकर  अपना साम्राज्य बढाया, बौद्ध धर्म को मध्य एशिया तक ले जाने का श्रेय कनिष्क कसाणा को जाता है , कुजुल कडफाइसिस ने कैसे गुर्जरो की सभी खापो को एकजुट करके कसानो के नेतृत्व में शक्तिशाली बना दिया। कैसे कषाणो के काल मथुरा कला शैली व गांधार कला शैली का विकास हुआ ,सोने के सिक्के चलाये ।
अगर महासभा अपनी ही रामधुन में रही तो हम कभी यह नहीं जानेंगे व गर्व करेंगे कि कैसे हूणो के नेतृत्व में गुर्जरो ने पूरा सेन्ट्रल एशिया जीता ,ईरान ,चीन ,मंगोल , उज्बेकिस्तान,ताजिकिस्तान ,तुर्कमेनिस्तान ,चेचेन्या ,जाँर्जिया , आर्मेनिया व तुर्की जीतक हूण साम्राज्य को दुनिया का सबसे महान साम्राज्य में बदल दिया ,अरे ये कोई छोटी मोटी बात नहीं है ।
इतिहास गवाह है कि आज तक मौर्य वंश को छोडकर कोई अफगानिस्तान तक नहीं जीत पाया है केवल सिंध व पंजाब तक छोटे राज्य रहे हैं । केवल गुर्जरो को ही यह गौरव प्राप्त है कि पहली सदी में कनिष्क के काल में चीन हारा , चौथी सदी में खुशनवाज हूण के काल में फारस का राजा फिरोज हारा ।
तोरमाण हूण व मिहिरकुल हूण ने बंगाल तक हूण साम्राज्य खडा कर दिया ।
हम इन जीतो को नजरअंदाज करके बस गौ, गायत्री , ब्रह्मा ,राधारानी , नंदबाबा पर ही अटके हुए हैं। ठीक है ये सब हमारे लोकमानस का हिस्सा है पर ये इतिहास में, पढाये नहीं जाते क्योंकि ये पौराणिक मिथ हैं।
हमें अपने इतिहास को लोगो के सामने लाने की जरूरत है , प्रदर्शन करने की जरूरत है  तभी लोग हमारे अतीत व आज को समझेंगे नहीं तो हवाबाजी के हर कोई कर ही रहा है।
यह जरूरी है कि हम कनिष्क व मिहिरकुल व मिहिरभोज के सम्मान दें। इनकी जयन्ति मनायें,इनकी प्रतिमा ओ को लगायें।
मेरी विनती है आप सबसे कि आप अपने इलाको में मिहिरकुल हूण,कनिष्क महान व मिहिरभोज की एक एक प्रतिमा जरूर लगवायें।
अपने पार्षदो पर दबाव डाले कि पार्क का नामकरण सम्राट कनिष्क कसाणा,गुर्जर सम्राट मिहिरभोज महान व सम्राट मिहिरकुल हूण के नाम पर करो।
मांगे मनवानी होंगी , तकादे जारी रखने होंगे। नहीं तो ढाई चावल रांधकर पूरे समाज को परोसा नहीं जायेगा बल्कि मुहँ ही झूठा किया जायेगा । ये ढाई चावल पेट नहीं भरने वाले ना ही स्वाद देने वाले।
अच्छा व सच यहीं है कि समय की नब्ज पकडकर पढा लिखा व विस्तार से सोचकर कदम उठायें व अपनी ऐतिहासिक योगदान को बतायें। हूण कुषाण प्रतिहार हमारे पूर्वज हैं उनकी समाज में जो देन है वो बतायी जाये।

राजस्थान दिवस पर विशेष गाथा राजस्थान की


आओ हम जग को सुनाये , गाथा राजस्थान की ।
नागभट , बप्पा , राणा सांगा , कुम्भा के बलिदान की ।।

पन्ना ने सुत की बलि दी , ममता का मन मार के ।
राजकुँवर के प्राण बचाये , गाथा राजस्थान की ।
आओ हम जग को सुनाये , गाथा राजस्थान की ।।

देवहंस ने ना झुकाई गर्दन,कम्पनीराज हिला दिया।
सूरजमल से वीर , गाथा राजस्थान की ।
आओ हम जग को सुनाये , गाथा राजस्थान की ।।

किसानों को हक़ दिलाये,वीर पथिक बलिदानी ने।
हल्दी घाटी गुनगुनाये , गाथा राजस्थान की ।
आओ हम जग को सुनाये , गाथा राजस्थान की ।।

मरू भूमि की मिट्टी महकती , गुर्जरसेना के रण से ।
अरबों को मार भगाये,गुर्जरात्रा के कण कण से ।
आओ हम जग को सुनाये , गाथा राजस्थान की ।।

सूर्य उपासक गुर्जर सम्राट कनिष्क ( GURJAR SAMRAT KANISHKA)

सूर्य उपासक गुर्जर सम्राट कनिष्क ( GURJAR SAMRAT KANISHKA)

Gurjar Emperor Kanishka Kushan/Kasana
यूँ तो भारत में सूर्य पूजा का प्रचलन सिन्धु घाटी की सभ्यता और वैदिक काल से ही है, परन्तु ईसा की प्रथम शताब्दी में, मध्य एशिया से भारत आए, कुषाण कबीलों ने इसे यहाँ विशेष रूप से लोकप्रिय बनाया। भारत में ‘शक संवत’ (78 ई0) का प्रारम्भ करने वाले कुषाण सम्राट कनिष्ट की गणना भारत ही नहीं एशिया के महानतम शासकों में की जाती है। इसका साम्राज्य मध्य एशिया के आधुनिक उजबेकिस्तान तजाकिस्तान, चीन के आधुनिक सिक्यांग एवं कांसू प्रान्त से लेकर अफगानिस्तान, पाकिस्तान और समस्त उत्तर भारत में बिहार एवं उड़ीसा तक फैला था।

कनिष्क ने देवपुत्र शाहने शाही की उपाधि धारण की थी। भारत आने से पहले कुषाण ‘बैक्ट्रिया’ में शासन करते थे, जो कि उत्तरी अफगानिस्तान एवं दक्षिणी उजबेगकिस्तान एवं दक्षिणी तजाकिस्तान में स्थित था और यूनानी एवं ईरानी संस्कृति का एक केन्द्र था। कुषाण हिन्द-ईरानी समूह की भाषा बोलते थे और वे मुख्य रूप से मिहिर (सूर्य) के उपासक थे। सूर्य का एक पर्यायवाची ‘मिहिर’ है, जिसका अर्थ है, वह जो धरती को जल से सींचता है, समुद्रों से आर्द्रता खींचकर बादल बनाता है।

Kanishka's coin depicting Miiro
कुषाण सम्राट कनिष्क ने अपने सिक्कों पर, यूनानी भाषा और  लिपि में मीरों (मिहिर) को उत्टंकित कराया था, जो इस बात का प्रतीक है कि ईरान के सौर सम्प्रदाय भारत में प्रवेश कर गया था।ईरान में मिथ्र या मिहिर पूजा अत्यन्त लोकप्रिय थी। भारत में सिक्कों पर सूर्य का अंकन किसी शासक द्वारा पहली बार हुआ था। सम्राट कनिष्क के सिक्के में सूर्यदेव बायीं और खड़े हैं। बांए हाथ में दण्ड है जो रश्ना सें बंधा है। कमर के चारों ओर तलवार लटकी है। सूर्य ईरानी राजसी वेशभूषा में है।  पेशावर के पास शाह जी की ढेरी नामक स्थान पर कनिष्क द्वारा निमित एक बौद्ध स्तूप के अवशेषों से एक बक्सा प्राप्त हुआ जिसे ‘कनिष्कास कास्केट’ कहते हैं, इस पर सम्राट कनिष्क के साथ सूर्य एवं चन्द्र के चित्र का अंकन हुआ है। इस ‘कास्केट’ पर कनिष्क के संवत का प्रथम वर्ष अंकित है।

  मथुरा के सग्रहांलय में लाल पत्थर की अनेक सूर्य प्रतिमांए रखी है, जो कुषाण काल (पहली से तीसरी शताब्बी ईसवीं) की है। इनमें भगवान सूर्य को चार घोड़ों के रथ में बैठे दिखाया गया है। वे कुर्सी पर बैठने की मुद्रा में पैर लटकाये हुये है। उनके दोनों हाथों में कमल की एक-एक कली है और उनके दोनों कन्धों पर सूर्य-पक्षी गरूड़ जैसे दो छीटे-2 पंख लगे हुए हैं। उनका शरीर ‘औदिच्यवेश’ अर्थात् ईरानी ढंग की पगड़ी, कामदानी के चोगें (लम्बा कोट) और सलवार से ढका है और वे ऊंचे ईरानी जूते पहने हैं। उनकी वेशभूषा बहुत कुछ, मथुरा से ही प्राप्त, सम्राट कनिष्क की सिरविहीन प्रतिमा जैसी है। भारत में ये सूर्य की सबसे प्राचीन मूर्तियां है। कुषाणों से पहली सूर्य की कोई प्रतिमा नहीं मिली है, भारत में उन्होंने ही सूर्य प्रतिमा की उपासना का चलन आरम्भ किया और उन्होंने ही सूर्य की वेशभूषा भी वैसी दी थी जैसी वो स्वयं धारण करते थे।

  भारत में पहले सूर्य मन्दिर की स्थापना मुल्तान में हुई थी जिसे कुषाणों ने बसाया था। पुरातत्वेत्ता एं0 कनिघम का मानना है कि मुल्तान का सबसे पहला नाम कासाप्पुर था और उसका यह नाम कुषाणों से सम्बन्धित होने के कारण पड़ा। भविष्य, साम्व एवं वराह पुराण में वर्णन आता है कि भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब ने मुल्तान में पहले सूर्य मन्दिर की स्थापना की थी। किन्तु भारतीय ब्राह्मणों ने वहाँ पुरोहित का कार्य करने से मना कर दिया, तब नारद मुनि की सलाह पर साम्ब ने संकलदीप (सिन्ध) से मग ब्राह्मणों को बुलवाया, जिन्होंने वहाँ पुरोहित का कार्य किया। भविष्य पुराण के अनुसार मग ब्राह्मण जरसस्त के वंशज है, जिसके पिता स्वयं सूर्य थे और माता नक्षुभा ‘मिहिर’ गौत्र की थी। मग ब्राह्मणों के आदि पूर्वज जरसस्त का नाम, छठी शताब्दी ई0 पू0 में, ईरान में पारसी धर्म की स्थापना करने वाले जुरथुस्त से साम्य रखता है। प्रसिद्ध इतिहासकार डी0 आर0 भण्डारकर (1911 ई0) के अनुसार मग ब्राह्मणों ने सम्राट कनिष्क के समय में ही, सूर्य एवं अग्नि के उपासक पुरोहितों के रूप में, भारत में प्रवेश किया। उसके बाद ही उन्होंने कासाप्पुर (मुल्तान) में पहली सूर्य प्रतिमा की स्थापना की।  इतिहासकार वी. ए. स्मिथ के अनुसार कनिष्क ढीले-ढाले रूप के ज़र्थुस्थ धर्म को मानता था, वह मिहिर (सूर्य) और अतर (अग्नि) के अतरिक्त अन्य भारतीय एवं यूनानी देवताओ उपासक था| अपने जीवन काल के अंतिम दिनों में बौद्ध धर्म में कथित धर्मान्तरण के बाद भी वह अपने पुराने देवताओ का सम्मान करता रहा|

दक्षिणी राजस्थान में स्थित प्राचीन भिनमाल नगर में सूर्य देवता के प्रसिद्ध जगस्वामी मन्दिर का निर्माण काश्मीर के राजा कनक (सम्राट कनिष्क) ने कराया था। मारवाड़ एवं उत्तरी गुजरात कनिष्क के साम्राज्य का हिस्सा रहे थे। भिनमाल के जगस्वामी मन्दिर के अतिरिक्त कनिष्क ने वहाँ ‘करडा’ नामक झील का निर्माण भी कराया था। भिनमाल से सात कोस पूर्व ने कनकावती नामक नगर बसाने का श्रेय भी कनिष्क को दिया जाता है। कहते है कि भिनमाल के वर्तमान निवासी देवड़ा/देवरा लोग एवं श्रीमाली ब्राहमण कनक के साथ ही काश्मीर से आए थे। देवड़ा/देवरा, लोगों का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि उन्होंने जगस्वामी सूर्य मन्दिर बनाया था। राजा कनक से सम्बन्धित होने के कारण उन्हें सम्राट कनिष्क की देवपुत्र उपाधि से जोड़ना गलत नहीं होगा। सातवी शताब्दी में यही भिनमाल नगर गुर्जर देश (आधुनिक राजस्थान में विस्तृत) की राजधानी बना।  यहाँ यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि एक कनिघंम ने आर्केलोजिकल सर्वे रिपोर्ट 1864 में कुषाणों की पहचान आधुनिक गुर्जरों से की है और उसने माना है कि गुर्जरों के कसाना गौत्र के लोग कुषाणों के वर्तमान प्रतिनिधि है। उसकी बात का महत्व इस बात से और बढ़ जाता है कि गुर्जरों का कसाना गोत्र क्षेत्र विस्तार एवं संख्याबल की दृष्टि से सबसे बड़ा है। कसाना गौत्र अफगानिस्तान से महाराष्ट्र तक फैला है और भारत में केवल गुर्जर जाति में मिलता है।

कनिष्क ने भारत में कार्तिकेय की पूजा को आरम्भ किया और उसे विशेष बढ़ावा दिया। उसने कार्तिकेय और उसके अन्य नामों-विशाख, महासेना, और स्कन्द का अंकन भी अपने सिक्कों पर करवाया। कनिष्क के बेटे सम्राट हुविष्क का चित्रण उसके सिक्को पर महासेन 'कार्तिकेय' के रूप में किया गया हैं|आधुनिक पंचाग में सूर्य षष्ठी एवं कार्तिकेय जयन्ती एक ही दिन पड़ती है, कोई चीज है प्रकृति में जिसने इन्हें एक साथ जोड़ा है-वह है सम्राट कनिष्क की आस्था। सूर्य षष्ठी के दिन सूर्य उपासक सम्राट कनिष्क को भी याद किया जाना चाहिये और उन्हें भी श्रद्धांजलि दी जानी चाहिये।  

  
सन्दर्भ

1. भगवत शरण उपाध्याय, भारतीय संस्कृति के स्त्रोत, नई दिल्ली, 1991,
2. रेखा चतुर्वेदी भारत में सूर्य पूजा-सरयू पार के विशेष सन्दर्भ में (लेख) जनइतिहास शोध पत्रिका, खंड-1 मेरठ, 2006
3. ए. कनिंघम आरकेलोजिकल सर्वे रिपोर्ट, 1864
4. के. सी.ओझा, दी हिस्ट्री आफ फारेन रूल इन ऐन्शिऐन्ट इण्डिया, इलाहाबाद, 1968 
5. डी. आर. भण्डारकर, फारेन एलीमेण्ट इन इण्डियन पापुलेशन (लेख), इण्डियन ऐन्टिक्वैरी खण्ड X L 1911
6. जे.एम. कैम्पबैल, भिनमाल (लेख), बोम्बे गजेटियर खण्ड 1 भाग 1, बोम्बे, 1896
7. विन्सेंट ए. स्मिथ, दी ऑक्सफोर्ड हिस्टरी ऑफ इंडिया, चोथा संस्करण, दिल्ली, 1990
                                                                                                                        (Dr Sushil Bhati)

शनिवार, 24 मार्च 2018

गुर्जरों ने धूमधाम से मनाया अंतरराष्ट्रीय गुर्जर दिवस

गुर्जरों ने धूमधाम से मनाया अंतरराष्ट्रीय गुर्जर दिवस

बिजोलिया कॉलेज का नाम विजय सिंह पथिक किया जाए वरना होगा आंदोलन : गुर्जर

मांडलगढ़| श्री देवनारायण मन्दिर प्रांगण हाड़ीकाखेड़ा में 22 मार्च अंतरराष्ट्रीय गुर्जर दिवस के अवसर पर गुर्जर इतिहास सम्मेलन का आयोजन किया गया, चक्रवर्ती गुर्जर सम्राट कनिष्क कसाणा के चित्र पर पुष्प अर्पित कर कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत की गई| मांडलगढ़ गुर्जर समाज द्वारा अतिथियों का स्वागत किया गया| राष्ट्रीय वीर गुर्जर महासभा के प्रदेशाध्यक्ष कन्हैयालाल गुर्जर ने समाज को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में आगे आने का आह्वान किया| अखिल भारतीय गुर्जर महासभा के कार्यकारी प्रदेशाध्यक्ष रामप्रसाद धाभाई ने कहा कि गुर्जर इतिहास के बिना भारतीय इतिहास ही शून्य है, उन्होंने समाज के युवाओं को संगठित होकर आगे बढ़ने की कहा| अखिल भारतीय गुर्जर महासभा मांडलगढ़ के ब्लॉक अध्यक्ष भैरूलाल गुर्जर पूर्व सरपंच ने कहा कि बिजौलिया के राजकीय महाविद्यालय का नाम विजय सिंह पथिक किया जाए वरना गुर्जर समाज ऐसा आंदोलन करेगा जिसे दुनिया देखेगी| इतिहासकार डॉ मोहनलाल वर्मा ने कहा कि चक्रवर्ती सम्राट कनिष्क महान कसाणा गौत्र के गुर्जर थे जिनके डर से चीन को भी दीवार बनानी पड़ी जिसे चीन की दीवार कहते है| साथ ही उन्होंने कहा कि गुर्जर समाज द्वारा हर वर्ष 22 मार्च को अंतरराष्ट्रीय गुर्जर दिवस मनाया जाता है जो हमारे गौरवशाली इतिहास का अनुपम उदाहरण है एवं हर वर्ष गुर्जर सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार जयन्ती को मिहिरोत्सव के रूप में मनाने का आह्वान किया एवं कुषाण गुर्जर राजवंश के बारे में सभी को विस्तृत जानकारी दी| इतिहासकार शैतान सिंह गुर्जर ने कुषाण, हूण, सोलंकी, चौहान, प्रतिहार, तंवर, बैंसला, गहलोत, सिसोदिया आदि गुर्जर राजवंशों पर विस्तार से बताया कहा कि गुर्जर इतिहास का पुनर्लेखन जरूरी है एवं छत्रपति शिवाजी महाराज बैंसला गौत्र के गुर्जर थे एवं मैत्रक, गहलोत, सिसोदिया वंश भी गुर्जर था| इतिहासकार डॉ केआर गुर्जर ने कहा कि गुर्जर सम्राट कनिष्क कसाणा का साम्राज्य गुर्जर इतिहास का स्वर्णिम काल रहा है अब गुर्जर समाज को कौम के महापुरुषों से प्रेरणा लेकर एकबार फिर से गुर्जर समाज को इतिहास रचना होगा साथ ही कहा कि आज ही के दिन गुर्जर सम्राट कनिष्क कसाणा ने शक संवत की शुरुआत की जिसे भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय संवत का दर्जा दिया गया है| इतिहासकार शिवराज गुर्जर ने बगड़ावत शौर्य लोकगाथा  पर प्रकाश डाला| इतिहासकार रामानंद गुर्जर टोंक ने श्री देवनारायण भगवत गीता के बारे में सभी को बताया| अखिल भारतीय गुर्जर महासभा के जिलाध्यक्ष भैरूलाल भड़ाना ने गुर्जर समाज के इतिहास से प्रेरणा लेकर वर्तमान में हर क्षेत्र में आगे आने का आह्वान किया| राजस्थान गुर्जर महासभा के जिलाध्यक्ष नाथूराम गुर्जर ने आह्वान किया कि युवा पीढ़ी आर्थिक क्षेत्र में आगे आये और अपने उद्योग स्थापित कर इतिहास रचे| राजस्थान युवा गुर्जर महासभा के जिलाध्यक्ष नन्दलाल गुर्जर ने की समाज में राजनैतिक चेतना स्थापित की जाए एवं युवा शिक्षा को पहली प्राथमिकता देकर हर क्षेत्र में आगे आये और सभी से निवेदन किया कि गुर्जर समाज दूध के व्यवसाय को डेयरी उद्योग की तर्ज पर करके समाज मे आर्थिक क्रांति लाए| गुर्जर महासभा चित्तोड़गढ़ के जिलाध्यक्ष कमल गुर्जर ने कहा कि गुर्जर इतिहास से प्रेरणा लेकर समाज में व्याप्त कुरीतियों को खत्म किया जाए| नन्दलाल गुर्जर ने कहा कि सरकार गुर्जर इतिहास को पाठ्य पुस्तकों में शामिल करें| कार्यक्रम को सत्यनारायण गुर्जर जिला महामंत्री अखिल भारतीय गुर्जर महासभा, कन्हैयालाल गुर्जर अध्यक्ष गुर्जर धर्मशाला, सीआर नारायण लाल गुर्जर, सीआर शिवकुमार गुर्जर, सीआर रतन गुर्जर, कमल गुर्जर, देबीलाल गुर्जर जहाजपुर ब्लॉक अध्यक्ष गुर्जर महासभा, बन्नालाल गुर्जर, लक्ष्मण गुर्जर, ताराचंद गुर्जर, रघुनाथ गुर्जर, मेवाराम गुर्जर, छितरलाल गुर्जर, घीसालाल गुर्जर, महादेव गुर्जर सरपंच, लादूलाल गुर्जर सरपंच, चांदमल गुर्जर, सोराम गुर्जर, राधेश्याम गुर्जर अध्यक्ष युवा गुर्जर महासभा, गोपाल गुर्जर ब्लॉक अध्यक्ष देव सेना, जगदीश गुर्जर पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष, रामचंद्र गुर्जर, राजू गुर्जर, रामेश्वर गुर्जर, देबीलाल गुर्जर, अर्जुन गुर्जर, दुर्गेश गुर्जर, गोपाल गुर्जर, मुकेश गुर्जर, किसन गुर्जर आदि ने  सामाजिक एकता पर विचार रखे| कार्यक्रम का सफलतापूर्वक संचालन गुर्जर महासभा के जिलामहामंत्री लक्ष्मण गुर्जर ने किया| कार्यक्रम में हजारों की संख्या में गुर्जर समाजजन एकत्रित हुए|